शशिकांत शर्मा नियंत्रक व महालेखा परीक्षक बनाये गये हैं.उन्होंने विनोद राय की जगह ली है.अगले चार साल तक देश के खाता बही संभालने की जिम्मेदारी इनकी होगी. जानिए आखिर कौन हैं ये.
शशिकांत शर्मा बिहार कैडर से 1976 बैच के आईएएस अफसर हैं.शर्मा की निजी जिंदगी की खास बात यह है कि वह नोएडा में अपने आलीशान घर से सालाना 48 लाख रुपये बतौर किराया हासिल करते हैं. इन्होंने अपना करियर बिहार के बांका से एसडीओ के रूप में शुरू की थी. वह बाद में पटना समेत बिहार के अनेक जिलों के डीएम भी रहे. वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं
शशिकांत शर्मा जुलाई 2011 से रक्षा सचिव हैं.यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क से राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले 61 वर्षीय शर्मा खुद रिटार्यमेंट की आयु पार कर चुके हैं पर वह फिलहाल सेवा विस्तार पर हैं. रक्षा सचिव बनने से पहले वे वित्त मंत्रालय में सचिव (वित्त सेवाएं) थे. उसके पहले 2003 से 2010 के दौरान उन्होंने रक्षा मंत्रालय में ही संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव और महानिदेशक (खरीद) पदों पर काम किया है.
विवाद से भी जुड़े
शर्मा की नियुक्ति पर कुछ राजनीतिक दलों ने विरोध भी शुरू कर दी है. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कैग की नियुक्ति की कोई स्पष्ट प्रक्रिया न होने के कारण कांग्रेस सरकार ने इसका फायदा उठाकर अपने विश्वस्त को इस पद पर बिठा दिया है. ताकि मौजूदा कैग विनोद राय के साथ हुए टकराव के जैसी घटनाएं दोबारा न हों.
ध्यान रहे कि विनोद राय के कार्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला खदानों के आवंटन सहित कई रिपोर्ट पर सरकार से टकराव सामने आया. इतना ही नहीं सरकार के कई मंत्रियों को जेल तक जाना पड़ा.
नियुक्त पर सवाल इसलिए
दर असल शशिकांत शर्मा विवादित अगस्तावेस्टलैंड हेलिकॉप्टर डील से शुरू से ही जुड़े रहे हैं और इस मामले में रिश्वतखोरी की बातें सामने आ चुकी हैं.
आम आदमी पार्टी के प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि ‘शर्मा ने रक्षा मंत्रालय में अलग-अलग पदों पर काम किया. इस दौरान लाखों-करोड़ों के रक्षा सौदे हुए. शर्मा कैग की कुर्सी पर बैठेंगे तो हितों का स्पष्ट टकराव होगा।.
कैसे होती है कैग की नियुक्ति
दर असल कैग की नियुक्ति की प्रक्रिया काफी गैर तकनीकी है. इसके लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं है सिर्फ वित्तमंत्रालय सरकार को प्रस्ताव भेजती है जिसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज दिया जाता है. अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के विपरीत कैग की नियुक्ति के लिए कोई नियुक्ति समिति नहीं है. इसका लाभ सरकारें उठाती रही हैं और अमूमन अपने मन मुताबिक नौकरशाहों को इस पद पर बिठाती रही हैं. कैग का कार्यकाल छह साल या 65 वर्ष की आयु, दोनों में से जो पहले पूरा हो, तक रहता है.