पंजाब केसरी के प्रधान सम्पादक विजय कुमार कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में ला कानूनी जोरों पर है और आला अधिकारी पुलिसवालों को सुधारने के लिए फिल्में दिखा रहे हैं जबकि उन्हें संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण चाहिए.

विजय कुमार चोपड़ा
विजय कुमार चोपड़ा

गत मास बुलंदशहर की पुलिस ने बलात्कार पीड़ित एक 10 वर्षीय बच्ची को पिटाई के बाद लॉक अप में बंद कर दिया, लखनऊ पुलिस ने एक 5 वर्षीय बच्चे को बिजली के झटके लगाए और अलीगढ़ में एक 6 वर्षीय बच्ची से बलात्कार व हत्या के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे निर्दोष लोगों को पुलिस ने बेरहमी से पीटा.

इसी संवेदनहीनता के चलते प्रदेश पुलिस की छवि लगातार खराब होती जा रही है और इसे सुधारने के लिए उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) अरुण कुमार ने एक अनोखा फैसला किया है.

उन्होंने सभी एस.एस.पीज़ को पांच पन्नों का एक सर्कुलर भेज कर ऐसी फिल्में दिखाने के लिए विशेष शो आयोजित करने का आदेश दिया है जिनमें पुलिस वालों को अच्छे रूप में पेश किया गया है. इनमें ‘दबंग’ (सलमान खान), ‘सिंघम’ (अजय देवगन), ‘अब तक छप्पन’ (नाना पाटेकर) शामिल हैं.

अरुण कुमार के अनुसार, ‘‘ये ऐसी फिल्में हैं जिनमें एक पुलिस अधिकारी अकेले ही अंतर्राष्ट्रीय तस्करों और गिरोह के सरगनाओं को खत्म कर देता है व किसी सीमा तक भ्रष्टï होने के बावजूद कानून की रक्षा करता है. अपराधी राजनीतिज्ञों पर ‘सिंघम’ की विजय का भी दर्शकों पर अच्छा प्रभाव पड़ा है. इनसे आपको अपनी छवि सुधारने में मदद मिलेगी और सम्मान भी मिलेगा।’’

एक पुलिस अधिकारी का इस बारे कहना है, ‘‘अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक तो सपनों की दुनिया में रह रहे हैं. अच्छे-अच्छे सर्कुलर भेजना आसान है परन्तु उन पर अमल करना बहुत मुश्किल है.’’

उसने आगे कहा,‘‘पुलिस की छवि सुधारने के लिए उन्हें फिल्में दिखाने की नहीं बल्कि इसमें बढ़ रही संवेदनहीनता और राजनीतिक हस्तक्षेप को समाप्त करने तथा पुलिस को दायित्व निर्वहन, लोगों से निपटने व जवाबदेह बनाने के लिए सही प्रशिक्षण देने की जरूरत है।’’इन कमियों को दूर किए बिना केवल फिल्में दिखाने से पुलिस ढांचे में सुधार संभव नहीं.

पंजाब केसरी में विजय कुमार के व्यक्त विचार

By Editor


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