प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कहा था कि अब भाजपा सिर्फ ब्राह्मण-बनियों की पार्टी नहीं है। कल रात भाजपा द्वारा बिहार विधान सभा के लिए उम्मीदवारों की जारी पहली सूची ने प्रधानमंत्री के दावों पर मुहर लगा दी। भाजपा की जारी सूची ने साफ-साफ संकेत दिया कि भाजपा अब भूमिहार-राजपूतों की पार्टी हो गयी। भाजपा की पहली सूची में 43 उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं, जिसमें 15 अकेले राजपूत व भूमिहार जाति के उम्मीदवार हैं।
वीरेंद्र यादव
आज पटना के अखबारों ने भाजपा उम्मीदवारों की सूची के साथ प्रत्याशियों की जाति की संख्या भी छापी है। इसमें किस जाति के कितने उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है, इसकी चर्चा भी है। भाजपा अब तक जिस ब्राह्मण-बनिया की पार्टी के रूप में चर्चित रही है, उस जाति के उम्मीदवारों की संख्या बहुत कम है। 43 में 2 ब्राह्मण और 4 बनिया जाति के उम्मीदवार हैं। जबकि अकेले भूमिहार जाति के नौ उम्मीदवार हैं। राजपूतों की संख्या छह है। जबकि राजपूत व भूमिहार जाति की आबादी बिहार में संयुक्त रूप से 10 फीसदी भी नहीं है। जबकि लगभग 30 फीसदी सीटों पर इनको उम्मीदवार बना दिया है।
मगध व शाहाबाद में नहीं मिला कोई यादव
बिहार में भाजपा के सामाजिक चेहरा बदलने का दावा किया जा रहा है। टिकट में उपेक्षित वर्गों की भागीदारी का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। उम्मीदवारों के नामों की गिनती शुरू हुई तो राजपूत-भूमिहार से आगे बढ़ते हुए यादव पर आकर ठहर जाती है। यादवों को मात्र पांच सीट दी गयी, जबकि मगध व शाहाबाद में भाजपा को यादव उम्मीदवार नहीं मिले। अब देखना यह होगा कि भाजपा उम्मीदवारों की आगामी सूची का सामाजिक समीकरण इससे अलग होगा या इसी की पुनरावृत्ति की होगी।
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