मुसलमानों के जदयू छोड़ने के बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब भाजपा के आधार वोट पर ‘डाका’ डालने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। सत्ता के लिए वोटों की डकैती कोई नयी बात नहीं है। इससे किसी को परहेज भी नहीं रहा है। वोट के अखाड़े में नीतीश अब लालू यादव से नहीं, भाजपा से लड़ रहे हैं। भाजपा के वोटों पर अपना ‘जाल’ फेंक रहे हैं। प्रशांत किशोर पांडेय को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर ब्राह्मण वोटों में सेंधमारी का प्रयास किया था। ब्राह्मण नेताओं की बैठक भी बुलायी थी। शनिवार को नीतीश ने जदयू के राजपूत नेताओं के साथ बैठक की। बैठक प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के आवास पर हुई थी। राजपूतों ने वोट के एवज में टिकट का सौदा भी नीतीश के सामने रखा। इससे पहले नीतीश ने कुशवाहा नेताओं की बैठक भी बुलायी थी और उपेंद्र कुशवाहा के आधार में सेंधमारी की रणनीति बना रहे थे। 

 वीरेंद्र यादव


पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने अतिपिछड़ा प्रधानमंत्री का सपना दिखाया था। मुसलमान वोटों के बिदकने के बाद नीतीश अब सवर्ण मुख्यमंत्री का सपना सवर्ण वोटरों को दिखा रहे हैं। प्रशांत किशोर को पार्टी का भविष्य बताकर यही संकेत दिया था। नीतीश अब तक ब्राह्मण-राजपूत की बैठक कर चुके हैं। संभव है भूमिहार व कायस्थ नेताओं की भी बैठक बुलायें। यानी भाजपा के आधार वोट में सेंधमारी का अभियान चला रहे हैं। भाजपा के बनिया वोटरों पर सेंधमारी की कोशिश पहले ही असफल हो चुकी है। उन्होंने बनिया की सबसे मजबूत जाति तेली को अतिपिछड़ा में वोट के लिए ही शामिल किया था, लेकिन एक भी तेली का वोट नीतीश को नहीं मिला। इसका खामियाजा भी नीतीश कुमार को भुगतना पड़ा। अतिपिछड़ी जाति में कई नयी और मजबूत जातियों को नीतीश ने शामिल कर दिया, लेकिन आरक्षण का कोटा नहीं बढ़ाया। इससे पूर्व की अतिपिछड़ी जातियों में भी आक्रोश है।
दरअसल नीतीश कुर्मी वोटों के अलावा किसी अन्य जाति के वोट पर दावा नहीं कर सकते हैं। लालू यादव का भय दिखाकर नीतीश ने लोकसभा चुनाव में भाजपा के बराबर सीट हथिया लिया। रामविलास पासवान ने भी लालू यादव का भय दिखाकर राज्यसभा की एक सीट के साथ लोकसभा की छह सीटों पर सौदा कर लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विकास व सुशासन का दावा जातीय समीकरण के सामने छलावा साबित हो रहा है। नीतीश कुमार भी इस सच्चाई से वाकिफ हैं। इसलिए भाजपा के ही जातीय आधार पर धावा बोल दिया है। नीतीश विधान सभा चुनाव में लालू यादव के साथ जीतकर भाजपा के साथ चले गये। राजनीति की यह परंपरा है तो भाजपा के साथ लोकसभा में अधिक सीटें जीतकर नीतीश कांग्रेस के साथ चलें जाएं तो इसे अनैतिक नहीं कहा जाना चाहिए।

By Editor


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