केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी संघ लोक सेवा आयोग के फरमान के खिलाफ आ गए हैं । उन्होंने चिंता जतायी है कि सी सैट पैटर्न से भारतीय भाषाओं के छात्रों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है ।
2013 की परीक्षा में कामयाब हुए 1122 छात्रों में सिर्फ़ 26 हिंदी माध्यम के हैं। यही कारण है कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषा के छात्रों के साथ भेदभाव को लेकर इन दिनों दिल्ली और देश के कई भागों में केंद्रीय सेवाओं में आने के इच्छुक परीक्षार्थी लगातार आन्दोलन कर रहे हैं।
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इससे स्पष्ट होता है कि “सी-सैट” पैटर्न भारतीय भाषा की विरोधी, ग्रामीण परिवेश से आने वाले छात्रों की विरोधी है। यह पैटर्न उच्च वर्ग के लोगों को लाभ पहुंचाने वाला है । किसी भी भाषा का विरोध चाहे अंग्रेजी ही क्यों न हो, गलत है। लेकिन अंग्रेजी परस्ती भी गलत है। साथ ही किसी भी राष्ट्र की मूल व क्षेत्रीय भाषाओं के खिलाफ मानसिकता होना भी गलत है।
श्री कुशवाहा का मानना है कि सी-सैट से पहले मुख्य परीक्षा में बैठने वाले छात्रों में हिंदी और अन्य भाषाओं के छात्रों का प्रतिशत 40 से ज़्यादा होता था, जबकि सी-सैट के बाद इसमें भारी गिरावट आई है। 2011 में मुख्य परीक्षा में बैठने वाले छात्रों में से82.9% अंग्रेज़ी के थे ।
2012 में यह संख्या 81.8% थी। 2013 की सिविल सेवा परीक्षा में सफल हिंदी छात्रों का प्रतिशत मात्र 2.3 ही है । जबकि 2003 से 2010के बीच ऐसे छात्रों का प्रतिशत हमेशा 10 से ज़्यादा रहा है। 2009 में यह प्रतिशत 25.4 तक था।
यूपीएससी की निगवेकर समिति ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सी-सैट परीक्षा शहरी क्षेत्र के अंग्रेज़ी माध्यम के छात्रों को फ़ायदा पहुंचाती है।
केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि हिन्दी सहित भारतीय भाषा माध्यम से संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा देने वाले छात्रों की मांगों का पार्टी हृदय से समर्थन करती है और भारत सरकार से भारत की राष्ट्रीय भावना व भाषाओं का सम्मान सुनिश्चित करने की गुजारिश करती है।