अमन और भाईचारे का सन्देश लेकर कश्मीर से मैत्री यात्रा, दिल्ली से समानता यात्रा, कन्याकुमारी से एकता यात्रा, केरल से एकजुटता यात्रा और असम से न्याय यात्रा अपने विभिन्न पड़ावों के बाद आज पटना पहुंची.
शांति का सन्देश लेकर न्याय यात्रा के लिए 25 महिलाओं का जत्था असम के जोरहाट से निकल कर पश्चिम बंगाल होते हुए बिहार में आगमन हुआ. इन सभी का आज पटना के गाँधी मैदान में भव्य स्वागत किया गया. इस न्याय यात्रा के जत्थे द्वारा ‘बातें अमन की’ करने हेतु 8 अक्टूबर, 2018 को पटना के गाँधी मैदान में मुख्य कार्यक्रम का आयोजन गांधी मैदान स्थित गांधी मूर्ति के पास किया गया.
कार्यक्रम का उदघाटन मानवाधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी, आजाद हिन्द फौज से जुड़े कर्नल महबूब अहमद की पत्नी जीनत अहमद, पटना विश्वविद्यालय में इतिहास विषय की प्रो. डेजी नारायण, पद्मश्री सुधा वर्गीस, बिहार महिला उद्योग की अध्यक्ष उषा झा, उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की नातिन मुक्त सिन्हा, प्रख्यात कवि अरुण कमल और आलोक धन्वा के द्वारा किया गया.
कार्यक्रम की शुरुआत इप्टा द्वारा कबीर और फैज़ के लिखे नज्मों के गायन से किया गया, सुमंतो बनर्जी के द्वारा रविन्द्र संगीत की प्रस्तुति एवं नारी गुंजन संस्था महिला बैंड के प्रस्तुति से किया गया.
कार्यक्रम का संचालन निवेदिता के द्वारा किया गया.
मुख्य कार्यक्रम में अमन की यात्रा जत्थे में शामिल सभी सदस्यों को सुश्री लिमा के द्वारा शाल भेंट कर स्वागत और सम्मानित किया गया.
बातें अमन की जत्थे के लिए सम्मान अभिभाषण जीनत अहमद और डेजी नारायण के द्वारा किया गया.
शबनम हासमी ने कहा की देश में शौहार्द, शांति का वातावरण समाप्त हो रहा है. वर्तमान सरकार समाज में फुट की राजनीत से समुदायों के बीच वैमनाश्यों का जहर घोल रहा है. उन्हौने कहा की महिलाओं, मुसलमानों, अल्पसंख्यकों, आदिवासी, दलितों के प्रति हिंसा बढ़ रही है. संविधान पर हमले हो रहे हैं, अधिकारों को कुचला जा रहा है.
किसानो में आत्महत्या की दर बढ़ रही है, हर हाथ को काम नहीं है, रोजगार का सही दाम नहीं मिलता है, महिलाओं और युवाओं को रोजगार के अवसर नगण्य हैं, अपनी बात बिना किसी डर के अभिव्यक्त करने और सुरक्षित जीवन जीने के अधिकारों का हनन किया जा रहा है. ये जत्था लोगों के बीच प्यार, मोहब्बत और भाईचारे लाने की दिशा में एक पहल है जिससे सभी लोग अमन की बातें कर सके और सही मायने में आज़ादी हासिल किया जा सके.
सुश्री सुधा वर्गीस ने कहा की महिलाओं को सशक्त करने कि दिशा में सरकार की नीतियाँ विफल रही है. आज भी समाज में नाबालिग लड़कियों, किशोरियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म और यौन शोषण के केस दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है और पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता है.
बिहार महिला उद्योग के उषा झा ने कहा कि, आज भी हमारे समाज में महिलाओं के हक, उनकी आज़ादी और सशक्तिकरण के दिशा में राजनीति होती रहती है. ये जत्था उन महिलाओं के लिए आज़ादी का मार्ग प्रसस्त करता है और ये जरुरी है है आज के समाज में अमन की बातें हो जहाँ शांति और भाईचारे की बात किया जा सके.
पटना विश्वविद्यालय की डेजी नारायण ने कहा कि, समाज, परिवार और धर्म में महिलाओं को अपनी जिम्मेवारी है जिसका पालन वो करती है मगर सत्ता पर बैठे हुए लोग उनका दमन करना चाहते और करते भी और अभी वो समय है जब सभी को इस विषय पर गंभीरता से सोचने, बात करने की जरुरत है जिससे हमारे समाज में अमन और भाईचारे का सन्देश फैले. हमारा संविधान इस समय खतरे में है और इसे बदलने का कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है. हमें संविधान की मूल समझ होनी चाहिए और अत्याचार और असमानता के खिलाफ आवाज बुलंद करने का सही समय यही है.