अमेरिकी जेल की सलाखों में सजा काट रहे डेविड हेडली के इशरत जहां संबंधी बयान पर भाजपा के उतावलेपन को चुनौती देते हुए नवल शर्मा बता रहे हैं कि भाजपा देश की अदालत और सीबीआई के बजाये हेडली पर भरोसा कर खुद बेनकाब हो गयी है.
एक ओर अपनी नाकामियों से जूझती और अपने शेखचिल्लीपन के चलते बड़ी तेजी से हास्य का पात्र बनती जा रही मोदी सरकार और दूसरी ओर मुद्दाविहिनता और सरकार की उप्लब्धिहीनता से नाखुश भाजपा के प्रवक्ता. वाकई यह दोनों के लिए बड़ा ट्रैजिक दौर चल रहा है . ऐसे में छोटा छोटा मुद्दा भी बड़ा सुकून पहुंचाता है . लेकिन जब मुद्दे की परत खुलती है तो जल्दी ही यह सुकून फिर से बेचैनी में बदल जाता है.
यही हो रहा है इशरत जहाँ मुद्दे को लेकर. बीजेपी नेताओं ने इस मुद्दे को जितनी तेजी से लपका वह हैरान करनेवाला रहा. लगे पूरे देश को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने . ज्यादा दुःख इस बात को देखकर हुआ कि जिनका जन्म ही राष्ट्र के विरोध में हुआ , जिनका पूरा वैचारिक आधार ,नीतियाँ और कार्यक्रम ही राष्ट्रवाद की विरोधी हैं , आज वही लोग गला फाड़ फाड़ कर लोगों को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा रहे हैं .
राजनीति अपनी जगह है पर राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के मसले पर शायद ही कोई पार्टी ऐसी राजनीति करती हो जैसी बीजेपी इन दिनों कर रही है . इशरत जहाँ की आड़ में ऐसा दिखाने का प्रयास किया जा रहा मानो सारे लोग देशद्रोही हों , एकमात्र आरएसएस और बीजेपी के लोग ही सच्चे देशभक्त हैं . पर इस दिखावे का आधार कितना खोखला है , जरा इसको देखा जाए.
गौर करें
कुछ बातों पर गौर करें . इशरत जहाँ लश्कर की आतंकी है , यह किसने कहा ? हेडली ने . हेडली ने सीधे नाम नहीं लिया बल्कि उसने कहा की मुझे लखवी नामक एक आतंकी ने बताया था की भारत में हुए हमले में एक महिला आतंकी भी मारी गयी थी . उसके बाद सरकारी वकील ने हेडली से जब उस महिला का नाम पूछा तो उसे तीन विकल्प दिए गए . उस तीन में से हेडली ने इशरत जहाँ का नाम लिया . यानी हेडली ने सीधे नहीं बताया बल्कि दूसरे से सुनी बात उसने बताई .
तो पहला सवाल यह पैदा होता है कि दूसरे द्वारा कही और सुनी गयी बातों का न्यायिक महत्व कितना होना चाहिए.एक बात और. वकील भी ऐसा वैसा नहीं बल्कि सरकारी वकील उज्जवल निकम जो मोदी सरकार से पद्म भूषण का पुरस्कार पा चुके हैं . चलिए कुछ देर के लिए हेडली के बयान को सही मान लिया जाए . तो क्या जो भी व्यक्ति कानून तोड़ेगा उसे आप फर्जी एनकाउंटर में मार देंगे
उनकी नजर में अदालत गलत, सीबीआई भी गलत
? इशरत जहाँ आतंकी थी या नहीं यह फैसला देश की सर्वोच्च अदालत को करना है , पर क्या किसी के फर्जी एनकाउंटर को सही ठहराया जा सकता है ? जबकि अहमदाबाद के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट तमांग ने चीख चीख कर कहा कि यह एनकाउंटर फर्जी है . एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में भी इसे फर्जी बताया . यही नहीं , देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई ने भी यहीं कहा और उसने बंजारा को गिरफ्तार भी किया . तो एक बड़ा सवाल यह पैदा होता है की देश की अदालतें गलत , देश की जांच एजेंसियां गलत. तो सही कौन हेडली ? वही हेडली जिसे तीन देशों ने डबल एजेंट करार दे रखा है.
कौन मांगे माफी ?
तो माफ़ी कौन माँगे ? गैर बीजेपी वो सारे दल और देश के तमाम बुद्धिजीवी और मीडिया घराने जिन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर और मोदी सरकार के सांप्रदायिक आधार पर नरसंहार करने के काले अतीत के आधार पर अपने विचार नियत किये थे या फिर बीजेपी के लोग माफ़ी माँगें जिन्होंने सर्वोच्च अदालत का फैसला आये बगैर एक सरकारी गवाह आतंकी के मुँह से सीधे नहीं बल्कि तिरछे होकर निकले बयान के आधार पर फिर से इशरत जहाँ की आड़ में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल खेलना शुरू कर दिया है ?
पिछले दो साल से सीबीआई पर आपका ( मोदी सरकार का) मालिकाना है . तो क्या आपको इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए ? छोड़िये जनाब ! 52 साल लग गए आपको तिरंगा फहराने में और चले हैं देशप्रेम का पाठ पढ़ाने ! सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का तराजू लेकर लोगों के देशप्रेम को मत तौलिये.
लेखक जनता दल यू के प्रवक्ता और टीवी पैनलिस्ट हैं