जयंती पर आयोजित हुई कवि–गोष्ठी और पुस्तक ‘मानस में लोकाचार‘ का हुआ लोकार्पण
पटना– महाकवि रामदयाल पाण्डेय न केवल एक महान स्वतंत्रता–सेनानी, ओज और राष्ट्रीय भाव के यशमान कवि, तेजस्वी पत्रकार और हिंदी के महान उन्नायकों में से एक थे, बल्कि सिद्धांत और आदर्शों से कभी न समझता करने वाले एक स्वाभिमानी साधु–पुरुष थे। उन्होंने हिंदी और हिंदी साहित्य सम्मेलन की बड़ी सेवा की। पाँच–पाँच बार सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए। सम्मेलन भवन के निर्माण में अपने सिर पर ईंट–गारे ढोए और अन्य साहित्यकारों को भी इस हेतु प्रेरित किया। और, भारत सरकार के स्वतंत्रता–सेनानी पेंशन लेने से यह कहा कर इनकार कर दिया कि, “भारत माता की सेवा पुत्र की भाँति की, किसी कर्मचारी की तरह नहीं, कि सेवा–शुल्क लूँ।“
यह बातें आज यहाँ साहित्य सम्मेलन में, महाकवि पांडेय की जयंती पर आयोजित कवि–सम्मेलन तथा पुस्तक–लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, पाण्डेय जी के इन्हीं सद्गुणों के कारण उन्हें, बिहार सरकार ने राष्ट्रभाषा परिषद का निदेशक–सह–अध्यक्ष बनाया था। उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा भी प्राप्त था। किंतु जब उन्हें लगा कि राज्य–सरकार उनके विचार और सिद्धांत के सामने बाधा बन रही है तो उस पैड को छोड़ने में उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया। आदर्श और सिद्धांत, राष्ट्र और राष्ट्र–भाषा उनके लिए और किसी भी वस्तु अथवा पद से बहुत बड़ी थी। उनके मूल्य पर उन्हें कुछ भी स्वीकार्य नहीं था।
समारोह का उद्घाटन और इस अवसर पर वयोवृद्ध समालोचक प्रो उग्रनाथ मिश्र की पुस्तक ‘मानस में लोकाचार‘ का लोकार्पण पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रास बिहारी प्रसाद सिंह ने किया। अपने लोकार्पण उद्गार में प्रो सिंह ने कहा कि,पुरानी पीढ़ी के लेखकों, शिक्षकों, चिंतकों और विद्वानों के मन में अपने कार्यों के प्रति गहरी निष्ठा और समर्पण होता था। अपने स्वास्थ्य की चिता छोड़ कर वे अपने विचारों के लिपिबद्ध होने की चिता करते थे। पुस्तक के लेखक ने लोकार्पित पुस्तक में, एक उच्च श्रेणी के साहित्यिक होने के साथ–साथ अपने वैज्ञानिक होने का भी परिचय दिया है।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के साहित्य मंत्री और सुप्रतिष्ठ समालोचक डा शिववंश पांडेय ने कवि को श्रद्धांजलि देते हुए, लोकार्पित पुस्तक की सविस्तार चर्चा की। उन्होंने कहा कि, यह आश्चर्य–जनक है कि, वनस्पति–शास्त्र के ज्ञाता और प्राध्यापक होते हुए भी लेखक ने तुलसी साहित्य पर रोमांचकारी शोध किए। लेखक ने तुलसी के रामचरित मानस पर तीन शोध–ग्रंथ लिखे है, जिनमें लोकार्पित पुस्तक के अतिरिक्त ‘मानस में जंतु प्रसंग‘ और ‘मानस में उद्भिज–प्रसंग‘ सम्मिलित है।
मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, लेखक के पुत्र श्रीनाथ मिश्र, डा मेहता नगेंद्र सिंह, इंद्रनाथ मिश्र, डा नागेन्द्र प्रसाद यादव पूर्व विधायक रामाकान्त पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, प्रो वासकी नाथ झा तथा राजनाथ मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–गोष्ठी का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी ने स्वरचित वाणी–वंदना का सस्वर पाठ कर किया। कवि शैलेंद्र झा ‘अन्मैन‘, जय प्रकाश पुजारी, गया प्रसाद वर्मा ‘विदग्ध‘, सच्चिदानंद सिन्हा, पं गणेश झा, रवि घोष, वरिष्ठ शायर श्री घनश्याम, हृदय नारायण झा, कुमारी मेनका , डा रमेश चंद्र पाण्डेय तथा सुनील कुमार दूबे ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को आत्म–मुग्ध किया।
मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धनयवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।