भारतीय रिजर्व बैंक का अगला गवर्नर कौन होगा? अगले आठ हफ्तों में मौजूदा गवर्नर डी सुब्बाराव का कार्यकाल पूरा होने वाला है और उनके उत्तराधिकारी की तलाश जारी है.
ए के भट्टाचार्य
माना जा रहा है कि इस पद के लिए तीन नामों पर विचार किया जा रहा है। ये नाम हैं-
1. योजना आयोग के सदस्य सौमित्र चौधरी,
2. आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम और
3. मुख्य आर्थिक सलाहकार रघुराम राजन
अखबारों में छपी खबरों के अनुसार इन तीनों को मजबूत समर्थन प्राप्त है. इनमें से किसी को भी रिजर्व बैंक का 23वां गवर्नर नियुक्त किया जा सकता है। हालांकि एक सैद्वांतिक संभावना और है.अगर इन तीनों में से किसी भी नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई तो सरकार सुब्बाराव का कार्यकाल एक साल और बढ़ाने का विकल्प चुन सकती है.
तो इस पद की दौड़ में शामिल तीनों प्रतिभागियों के बाजी मारने की कितनी संभावनाएं हैं? अभी यह कहना बेहद मुश्किल है कि आखिर में रिजर्व बैंक के गवर्नर की कुर्सी पर कौन काबिज होगा। लेकिन अक्सर बीता समय भविष्य का अच्छा संकेतक होता है। सुब्बाराव समेत पिछले 22 गवर्नरों पर ध्यान दिया जाए तो इनमें से करीब 14 भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़े थे। लेकिन 1935 में जब रिजर्व बैंक की स्थापना हुई थी तब ऐसा नहीं था।
पहला गवर्नर
रिजर्व बैंक के पहले गवर्नर सर ऑजबॉर्न स्मिथ एक पेशेवर बैंकर थे। स्मिथ ने साढ़े तीन साल का अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया और जून 1937 में ही बैंक से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद मिंट रोड स्थित रिजर्व बैंक के मुख्यालय में प्रशासनिक अधिकारियों के आने का लंबा सिलसिला चला। 1937 से लेकर 1975 तक रिजर्व बैंक की कमान 10 प्रशासनिक अधिकारियों ने संभाली थी। इनमें से सात इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) जैसे विशिष्टï वर्ग से ताल्लुक रखते थे, दो ने काफी लंबे समय तक वित्त मंत्रालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय जैसे सरकारी विभागों में काम किया था और एक पी सी भट्टïचार्य तो इंडियन ऑडिट एवं अकाउंट सेवा से ताल्लुक रखते थे।
आर एन मल्होत्रा 1985 में रिजर्व बैंक के गवर्नर के पद पर काबिज होने वाले पहले आईएएस अधिकारी थे और उनके बाद आए एस वेंकिटारमणन। इनके बाद गवर्नर बने सी रंगराजन और बिमल जालान के साथ ही अर्थशास्त्रियों का दौर लौटा और उन्होंने एक बार फिर 10 साल के लिए इस कुर्सी को आईएएस अधिकारियों की पहुंच से दूर कर दिया। रिजर्व बैंक में गवर्नर के तौर पर आईएएस की वापसी हुई वाई वी रेड्डïी और सुब्बाराव के साथ। हालांकि इस बात पर विवाद हो सकता है कि रेड्डïी गवर्नर बनने से कुछ साल पहले ही आईएएस का तमगा छोड़ चुके थे।
तो इस पुरानी जानकारी से हमें चौधरी, मायाराम और राजन के गवर्नर बनने की संभावना के बारे में क्या पता चलता है? पहली बात यह कि रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर एक आईएएस को तरजीह दी जाएगी। आईएएस अधिकारी का अर्थशास्त्री होना इस संभावना को और बढ़ा देगा। दूसरी बात वित्त मंत्रालय के साथ काम करने का अनुभव हो तो रिजर्व बैंक का गवर्नर बनने की संभावना और बढ़ जाएगी। जरा आंकड़ों पर ध्यान दीजिए। रिजर्व बैंक के 22 गवर्नरों में से करीब 12 ने रिजर्व बैंक में जाने से पहले वित्त मंत्रालय के साथ काम किया था। इनमें चार आईएएस अधिकारी, दो आईसीएस अधिकारी, दो गैर-आईएएस प्रशासनिक अधिकारी, दो अर्थशास्त्री (पटेल और सिंह) और आरबीआई कैडर से आने वाले इकलौते गवर्नर नरसिम्हन शामिल हैं। तीसरी बात, 22 में से महज दो गवर्नरों ने ही योजना आयोग के साथ काम किया था।
इन सभी बातों पर ध्यान दिया जाए तो मायाराम इस दौड़ में सबसे आगे हैं। वह आईएएस अधिकारी हैं और उनके पास वित्त मंत्रालय में काम करने का पर्याप्त अनुभव भी है। और सबसे अहम बात यह कि मौद्रिक नीति के मोर्चे पर वह मौजूदा वित्त मंत्री का नजरिया और जल्द से जल्द नए बैंक लाइसेंस जारी करने की उनकी मंशा को अच्छी तरह समझते हैं। मायाराम रेड्डïी या सुब्बाराव जैसे नहीं हैं और काफी हद तक मल्होत्रा या वेंकिटारमणन जैसा नजरिया रखते हैं। लेकिन क्या यह बात मायाराम के खिलाफ जाएगी?
राजन भी वित्त मंत्रालय में हैं और जाने माने अर्थशास्त्री हैं। लेकिन सरकार के साथ काम करने का सीमित अनुभव उनकी संभावनाओं पर पानी फेर सकता है। चौधरी एक अर्थशास्त्री हैं लेकिन उन्होंने कभी भी वित्त मंत्रालय के साथ काम नहीं किया है और सरकार के साथ काम करने का उनका अनुभव भी योजना आयोग में काम की अवधि तक ही सीमित है।
अगर सरकार आखिर में मायाराम को ही रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाती है तो इसका मतलब होगा कि उसने मौद्रिक नीति को पार लगाने के लिए आईएएस अधिकारियों को पसंद करने की पुरानी परंपरा को बरकरार रखा है।
बिजनस स्टैंडर्ड से साभार