इंसानियत, इस्लाम और हमारा कर्तव्य
मौदूा दौर में अगर मज्लिस ए अवाम के संदर्भ में विश्व समुदाय का नीरिक्षण किया जाये तो यह बात सामने
है कि वर्तमान आलमी नजरिया इस्लाम के नजरिया को आतंकवाद से जोड़ने के कायल हैं.
इन हालात के जिम्मेदार वे संगठन हैं जो इस्लाम के नाम पर दहशतगर्दी को अंजाम देते हैं. जबकि हकीकत
इसके बरअक्स है.
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इस्लाम( Islam) और मजहबी रवादारी
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इस्लाम इंसानियत का एहतराम करने की तालीम देता है.यह वह नैतिक पहलु है जिसने पूरी दुनिया को
प्रभावित किया है.इस्लामी दीन व रिवाज के किरदार और कार्य में इंसानी एहतराम के वे उच्च पहलु मिलते हैं
जिन पर अमल करके आज भी देश वासियों के दिलों को प्रभावित किया जा सकता है और लोगों के दिलों में
इस्लाम के संबंध में शक व सुबह को दूर किया जा सकता है.
हदीस का उदाहरण
इंसानियत के एहतराम का अंदाजा इस बात से समझ सकते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद साहब जब किसी
राज्य में गवर्नर नियुक्त करते थे तो इस बात का निर्देश दिया करते थे कि लोगों के साथ नरमी बरती जाये
और उन्हें डर में मुब्तिला न किया जाये. सही मुस्लिम मे एक घटना का जिक्र है कि जब मुआज बिन जबल को
यमन का गवर्नर नियुक्त किया गया तो मोहम्मद साहब ने फरमाया कि आसानी पैदा करना, मुश्किल पैदा मत
करना और लोगों को दुश्वारी में मत डालना.आपस में इत्तेफाक रखना और लोगों में मतभेद मत करना.
इंसानियत के एहतराम के लिए इस्लाम की यही तालीम पर्याप्त है.जो मोमिन हैं वे मानवता के प्रति इस्लामी
तालीम को समझते हैं और उन पर अमल करने की कोशिश करते है. और वे इस बात के गवाह हैं कि इस्लाम में
अमन, शांति और मानवता और मानवाधिकार की रक्षा को बुनियादी हैसियत प्राप्त है.इसलिए आज इस बात की
आवश्यकता है कि हम मानव सम्मान के इस्लामी तालीम पर अमल करें और उनका खूब प्रचार करें ताकि दुनिया
से नफरत का अंत किया जा सके और इंसानों को इंसानियत के करीब लाया जा सके.