/निस्तुला हेब्बर/

अपनी स्थापना के 150 वर्ष बाद इंटेलिजेंस ब्यूरो( आईबी) को पहला मुस्लिम प्रमुख मिला है.1977 बैच के आईपीएस अधिकारी सैयद आसिफ इब्राहीम दुनिया की इस सबसे पुरानी जांच एजेंसी के हाल ही में निदेशक बनाये गये हैं.

आसिफ इब्राहीम सबसे पहले 1980 में तब सुर्खियों में आये थे जब उन्होंने बतौर आईपीएस खतरनाक डाकू गिरोह और उसके सरगना मलखान सिंह का सफाया कर दिया था.

आसिफ इबाराहीम के करियर पर पैनी निगाह रखने वाले एक अधिकारी का कहना है कि वह एक अत्यंत ही विरले प्रतिभा के अधिकारी हैं जिन्हें संवेदनशील सुचनाओं पर गहरी पकड़ है.इतना ही नहीं उन्हें उनके काम में आम लोगों का भी भारी समर्थन प्राप्त है.इब्राहीम भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निजी सचिव भी रह चुके हैं.

एक अधिकारी जो उनके साथ काम कर चुके हैं, अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहते हैं, “इब्राहीम ने आतंक विरोधी अभियानों में बेहतरीन कौशल और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है.यह इब्राहीम ही है जिन्होंने आतंकवाद को समझने का एक नया दृष्टिकोण दिया है.इब्राहीम पहले अधिकारी हैं जिन्होंने यह समझाने की कोशिश की थी कि तमाम आतंकी गिरोहों की जड़े सिर्देफ श से बाहर ही नहीं बल्कि कुछ भारत में भी है.उनके इसी नजरिये के बाद यह स्पष्ट हो पाया था कि इंडियन मुजाहिदीन की जड़ें भारत में ही हैं”.

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ऐसे कई लोग हैं, सरकार के बाहर भी और अंदर भी जिनका यह मानना है कि इब्राहीम को आईबी का निदेशक बनाये जाने को धार्मिक नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि वह एक बहुत ही प्रतिभाशाली अधिकारी हैं.रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दौलत कहते हैं, “प्लीज इसे कम्युनल इश्यु न बनायें. वह एक बेहतरीन अधिकारी हैं और इसी बूते वह इस पद पर पहुंचे हैं.”

लेकिन आईबी में ही कुछ ऐसे अधिकारी हैं जिनका मानना है कि 1990 में इब्राहीम आईबी से जुड़े और इस दौरान उन्हें कई बार आईबी की मुख्यधारा से काटने की कोशिश की गई, सिर्फ इसलिए कि वह एक खास धर्म से ताल्लुक रखते हैं. अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर वह कहते हैं “आईबी का गठन 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रीजी हुकूमत ने किया था जिसकी परम्परा रही है कि एक खास समुदाय के प्रति संदेह का दृष्टिकोण रखा जाये. यह ब्रिटिश कोलोनी की सेक्रिट सर्विस की परम्परा का अंग रहा है.आईबी आज तक उसी दृष्टिकोण का किसी न किसी अंदाज में पालन करती रही है”.

मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीच्यूट के दक्षिण एशिया प्रभाग के निदेशक तुफैल अहमद इस संबंध में कहते हैं- “मामला अभी तक चाहे जो भी रहा हो, आईबी की ब्रिटिश कालोनी की जो भी परम्परा रही हो अब खुशी की बात है कि सांकेतिक रूप से ही सही अब यह कुपरम्परा टूटी है, जो एक अच्छी बात है”.

तुफैल कहते हैं, “यही कारण है कि इब्राहीम का( मुसलमान) इस पद तक पहुंचने में इतना लम्बा समय लगा.अब भारत का लोकतंत्र काफी मैच्योर हो गया है.जैसे जैसे लोकतंत्र की जड़े मजबूत होंगी वैसे वैसे समाज के हर तबके की नुमाइंदगी हर जगह बढेगी”. तुफैल कहते हैं इब्राहीम का आईबी प्रमुख नियुक्त होना मुस्लिम समाज के लिए एक ऐतिहासिक लम्हा है साथ ही यह भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत बनाता है. तुफैल यह भी कहते हैं कि आने वाले दशकों में अनेक मुस्लिम युवा इब्राहीम से प्रेरणा लेकर ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर आयेंगे.

हालांकि तुफैल यह भी कहते हैं “इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आईबी का प्रमुख कौन है.यह एजेंसी अपना काम व्यवासायिक तरीके से करती है और करती रहेगी. जांच एजेंसियां कोई राजनीतिक संगठन नहीं हैं और इन्हें अपना काम अलग ढ़ंग से करना होता है”.

“अदर्यस वॉयस” कॉलम के तहत हम अन्य समाचार माध्यमों की खबरें हू-ब-हू छापते हैं. यह लेख हमने इकॉनोमिक टाइम्स से साभार लिया है.

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