पीएम मोदी ने मथुरा में गिन-गिन कर बताया कि देश के ट्रस्टी के रूप में उन्होंने भ्रष्टाचार मिटा दिया. पर नवल शर्मा के इन सवालों में दम है जिनके जवाब मोदी के पास नहीं हैं.
“मेरे साल भर के कार्यकाल में कोई घोटाला नहीं हुआ , कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ” ! “हुआ क्या” ? ताली नहीं बजी ! फिर पूछा “हुआ क्या” ? फिर ताली नहीं बजी ; –कुछ ऐसा ही दृश्य था हमारे अब तक के सबसे ‘काबिल’ प्रधानमंत्री जी की मथुरा सभा का .
वाणी में वही पुराना ठसक दिखा लेकिन चेहरे के आत्मविश्वास पर आत्मग्लानि का भाव शायद भारी पड़ रहा था . खैर , बात हो रही थी भ्रष्टाचार और घोटाले की .
भ्रष्टाचार और नौकरशाह
ईमानदार आदमी या संस्था के मूल्यांकन का पहला पैमाना यह होता है कि वह ईमानदार लोगों को प्रोत्साहन देगा और बेईमान , भ्रष्ट लोगों को दण्डित करेगा . पिछले साल भर में अनगिनत ऐसे उदाहरण सामने आये जब ईमानदार अधिकारियों को मोदी सरकार के द्वारा बेवजह प्रताड़ित किया गया. अशोक खेमका की कर्मठता की दुहाई देनेवाली बीजेपी जब हरियाणा में सरकार में आयी तो खेमका को पुरातत्व विभाग का निदेशक बना दिया . शायद बीजेपी की नज़रों में ईमानदारी की सबसे महफूज और सही जगह म्यूजियम ही है . डॉ. संजीव चतुर्वेदी जिन्होंने एम्स का सीवीओ रहते कई बड़े मामले खोल दिए थे और कुछ बड़ा घोटाला सामने आने की उम्मीद थी , उन्हें भी चलता कर दिया गया . हद तो तब हो गयी जब भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करनेवाले कर्नाटक के वरिष्ठ आईएस एमएन विजय कुमार को केंद्र सरकार की सहमति से राज्य सरकार ने जबरन रिटायर कर दिया . कभी सुना था ऐसा !पूरे देश में ऐसे अधिकारीयों की लम्बी फेहरिस्त है.
ईमानदार हैं तो डरते क्यों हैं?
आगे बढिए . ईमानदार सरकार के मूल्यांकन का एक दूसरा पैमाना यह हो सकता है कि वह ऐसी संस्थाओं को प्रोत्साहित करे जिनकी भ्रष्टाचार उन्मूलन में सीधी और निर्णायक भूमिका होती है. भारत के प्रशासकीय ढाँचे में तीन पद ऐसे माने जाते हैं जिनकी मजबूती भ्रष्टाचार से लड़ने में महत्वपूर्ण मानी जाती है . पहला , लोकपाल का , दूसरा मुख्य सूचना आयुक्त का और तीसरा केंद्रीय सतर्कता आयुक्त का . लोकपाल बिल को पारित और उसपर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर हुए लम्बा समय हो चुका है पर अभी तक ईमानदार मोदी सरकार ने उसकी नियुक्ति नहीं की है.
इसी तरह सरकार के विरुद्ध आम जनता के हाथों में सूचना का अधिकार यानि आरटीआई एक बड़ा हथियार होता है . आरटीआई से जुडी अर्जियों के निपटारे के लिए केंद्रीय सूचना आयुक्त का पद बनाया गया है . पर इस ईमानदार और पारदर्शी सरकार ने अभी तक इसकी नियुक्ति नहीं की है .सुनते थे कि मोदी जी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते सुचना के अधिकार को निष्क्रिय बना दिया था , पर अब दिखाई भी दे रहा है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार इस बात से डर रही है कि कहीं कोई ऐसी जानकारी न मांग ले जो सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर देगी. ऐसा ही कुछ हाल केंद्रीय सतर्कता आयुक्त का भी है . तो फिर इन सारी बातों का परिणाम क्या निकलेगा ? जाहिर है घोटाला . पर घोटालों की अनुगूँज उतनी तेजी से अगर सुनाई नहीं देती तो इसका कारण है मोदी जी का मीडिया मैनेजमेंट और सुनियोजित प्रचारतंत्र जिसके बल पर मोदी जी जब भ्रष्टाचार और जातिवाद जैसे विषयों पर भाषण पिलाते हैं तो लगता है एकमात्र वही ईमानदार बाकी सब भ्रष्ट.
घोटाले में शिवराज का नाम
व्यापम घोटाला में बीजेपी शासन वाले शिवराज सिंह का डायरेक्ट नाम आया पर सीबीआई जांच की जरुरत नहीं समझी गयी . पीएमटी घोटाले में भी ऐसा ही हुआ . महाराष्ट्र में एलईडी बल्ब से जुड़ा भारी घोटाला हुआ जिसमें पच्चीस हज़ार करोड़ रुपया का वारा न्यारा हुआ . मोदी जी की पारदर्शी सरकार ने यह बल्ब लगाने का ठेका एक ऐसी कंपनी को दिया जो वर्षों से मृत है और जिसका अस्तित्व केवल कागजी है .बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने आरोप लगाया है कि अगर इस मामले की जांच करायी जाए तो दो केंद्रीय मंत्रियों को पद से हाथ धोना पड़ सकता है. आगे बढिए . सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में मोदी सरकार के प्रमुख सिपहसलार नितिन गडकरी पर हजारों करोड़ की वितीय अनियमितता का खुलासा किया . पर बीजेपी वाले अब सीएजी की रिपोर्ट को ही नकारने पर तुल गए हैं . याद कीजिये ये वही बीजेपी है जो यूपीए सरकार के कार्यकाल में घोटालों का खुलासा करने पर सीएजी की वाहवाही में लगी रहती थी और आज वही सीएजी उसके लिए बुरी हो गयी.
नवल शर्मा एक विनम्र राजनीतिक कार्यकर्ता के साथ साथ राजनीतिक चिंतक के रूप में जाने जाते हैं. जद यू के आक्रामक प्रवक्ता रहे नवल मौलिक और बेबाक टिप्पणियों के लिए मशहूर हैं. अकसर न्यूज चैनलों पर बहस करते हुए दिख जाते हैं. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है.
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