-व्रतियों ने पारण कर तोड़ा 36 घंटे का उपवास
-गंगा घाटों पर उमड़ा आस्था का सैलाब
पटना.

लोक आस्था का रंग राजधानी के घाटों के साथ कई घरों और कॉलाेनियों में कुछ इस कदर साकार हुआ कि पूरा शहर छठ मईया की आराधना में लीन हो गया. तड़के चार बजे से ही श्रद्धालुओं से घाटों की जाने वाला इलाका पट गया था और सड़कों पर भीड़ कुछ इस कदर उमड़ी की पूरे अशोक राजपथ पर वाहनों की अच्छी खासी भीड़ दिखाई दी. सब लोग घाटों पर जल्दी जल्दी पहुंचना चाह रहे थे. भगवान भास्कर के उदीयमान स्वरूप को निहारने के लिए सबलोग टकटकी लगाये रहे और जैसे ही सुबह के छह बजे उनकी लालिमा को देखने के बाद सब लोग बाग प्रसन्न हो गये. उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ देने के साथ ही लोक आस्था का महापर्व छठ अपने चरम पर था. घाटों पर भीड़ केवल अपनी आस्था जताने के लिए नहीं बल्कि इस महान पूजा का हिस्सा बनने को लालायित थी. अर्घ देने के बाद अग्निदेव की पूजा और फिर दीपदान के साथ ही कोशी भरने की परंपरा पूरी हुई. इसके बाद व्रतियों ने पारण किया और सभी इसके बाद प्रसाद खाकर गंगा घाटों से अपने अपने घरों की आेर रवाना हुए. दीपदान और कोशी भरने की परंपरा का निर्वहन दीपदान और कोशी भरने की परंपरा संपन्न कराने के लिए लोग जल्दी छठ घाटों पर पहुंच रहे थे. ऐसी मान्यता है कि ऐसे व्रती जिनके घर में उस साल खुशी या प्रगति होती है वे कोशी भरते हैं. इसके अंतर्गत ईख का मंडप बनाकर उसके नीचे डाला (टोकरी) में दीप सजाकर रखा जाता है. महिलाएं कोशी भरने का गीत गाती हैं और दी गई खुशी के लिए छठ मइया को धन्यवाद देती हैं साथ ही अपना और अपने परिवार का कुशल-क्षेम बरकरार रखने के लिए छठ मां से आशीर्वाद लेती हैं. यह दृश्य अलौकिक होता है. इस अवसर पर पूरे घाट का वातावरण छठ मइया के गीतों से गुंजायमान हो रहा था. इससे पहले रविवार की शाम को अस्ताचलगामी (डूबते) सूर्य को अर्घ्य दिया गया था.