उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष अरुण कुमार को हटाये जाने के बाद घमासान तो है ही लेकिन ऐसे समय में एक गुमनाम व्यक्ति का उपेंद्र कुशवाहा के नाम ऐसा पत्र जारी किया गया है जिसने सोशल मीडिया में खलबली मचा कर रख दी है. इस पत्र में जहां अरुण कुमार को सवर्णवादी मानसिकता से लबरेज बताया गया है वहीं उपेंद्र कुशवाहा की सामाजिक न्याय की राजनीति पर कई सवाल खड़े किये गये हैं. हम इस पत्र को शब्द ब शब्द छाप रहे हैं- सम्पादक
आदरणीय उपेन्द्र कुशवाहा जी,
सादर प्रणाम।
मै जानता हूं कि आप चिंता और चुनौतियों के दौर से गुजर रहे हैं क्योंकि आपके खून-पसीने से खड़ी की हुई पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है।
अरुण-रणवीर सेना का एजेंट
आश्चर्य होता है कि एक भूमिहार नेता जो रणवीर सेना का एजेंट रहा है, ब्रह्मेश्वर की मौत का मातम मनाता हो, उसके श्राद्धभोज के लिये लाखो चंदा देता है- वो घोर जातिवादी शख्स आपके खिलाफ मुहिम चलाये हुये है। कई लोग जानते हैं दिल्ली में कि सरकार व मंत्रियों से लोगों व कंपनियों के लिये दलाली के नाम से पैसे बनाने के लिये वो शख्स मशहूर रहा है। इस अरूण की देशभर में व विभिन्न संस्थानों में संपत्ति जितनी है उसके सामने तो उपेन्द्र जी आप भी पानी भरते नजर आयेंगे। देशभर के भूमिहार/सवर्ण अरूण के लिये जितना दांव लगा सकते हैं, उसके गोलबंदी/सोहबत में रहते हैं उसके पैसे/धन-सम्पत्ति के सामने तो आपकी कोई हैसियत ही नहीं है और ये आपके जिस पार्टी सहयोगी पर हवाला कारोबारी होने का आरोप लगाया जा रहा है वो प्रदीप तो पीद्दी है और राजेश यादव पीद्दी का दुम है जिसके कमाउ-खाउ टाइप का घर-परिवार को देख कर माथा ठोक लेंगे।
सीएम की छाती तोड़ने का बयान
जब बीते दिनों यही अरूण एक सम्मानित ओबीसी मुख्यमंत्री की छाती तोड़ने की बात कर रहा था तो उस समय रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते आपसे मेरी अपेक्षा इस घृणित बयान की निंदा करने की थी लेकिन उस वक्त आप काइयां की माफिक चुप्पी साध गये थे। सवाल जब ओबीसी का था तब आप राजनीति कर रहे थे और जब आपकी राजनीति पर आन पड़ी है तो जाहिर है हमारी सदभावना सिर्फ एक कुशवाहा या ओबीसी के नाते ही आपसे है। ये एक मौका था जब राजनीति में नैतिकता व मर्यादा का हवाला देकर अरूण के बयान को खारिज करते और अपनी पार्टी के बेलगाम, कांइयां, कास्टिस्ट फ्रॉड को प्ले डाउन करते और अपनी हार्डकोर प्रो-ओबीसी छवि को पुख्ता करते। ऐसा न करके आप मौका चुक गये और लालूजी ने भूमिहारों को सार्वजनिक तौर पर ललकार कर कहा कि किसकी हिम्मत है की नीतीश का छाती तोड़ेगा उसको तोड़ देंगे।
पॉलिटकल स्पेस
आपके लिये तो आरजेडी/जेडीयू से परे एक बड़ा या छोटा सा ही सही ओबीसी पॉलिटिक्स का स्पेस तो स्वाभाविक तौर पर बनता भी है। लेकिन राजनीति में मरे पड़े अरूण को राजनीति में दुबारा सांसद बनाकर जिंदा करने का श्रेय रालोसपा और आपके बदौलत मिले कुशवाहा एवं दूसरे सहानुभूति वाले गैर-भूमिहार वोटों की है। यानि आपके चलते कुशवाहा समाज को दिल पर पत्थर रखकर जगदेव प्रसाद के हत्यारों से सहानुभूति रखने वाले जमात/आदमी को वोट देना पड़ा। अब दिक्कत है कि अरूण टाइप के लोग पैर रखने का जगह दीजिये तो शरीर घुंसाना चाहते हैं, फिर अपनी जमात बनाना चाहते हैं, मरते-मरते जिंदा हो जाने पर फिर अपने ही नेतृत्वकर्ता को खारिज कर- खत्म कर, हैसियत बता खुद नेता बनना चाहते हैं।
आपके लिये सांप – छुछुन्दर की स्थिति है अगर अरूण से कॉम्प्रोमाइज करेंगे तो आपकी ऐसी भद पिटेगी की डूबना तय है और अगर किक आउट या साइड करेंगे तो पार्टी टूटनी तय है क्योंकि अरूण ने आपके खिलाफ पूरी घेरेबंदी कर ली है,पार्टी के भीतर व बाहर भी। आपकी स्वतंत्र पार्टी है तो बाजार मे संदेश कैसे आता है कि अमित शाह ने फटकार लगाकर पार्टी विवाद सुलझाने का निर्देश दिया, इसपर आपने यह संदेश क्यों नहीं दिया कि ये रालोसपा का अंदरूनी मामला है और इसमें हस्तक्षेप का बीजेपी के लिये कोई जगह नहीं है। इस प्रकार की कमजोर- दब्बू छवि से बाहर आने की जरूरत है।
उपेंद्र कुशवाहा को नसीहत
जब राज्यसभा सीट छोड़कर सड़क पर आकर नयी पार्टी बना सकते थे विधानसभा में 23 सीट पर क्यों माने? मंत्रीपद छोड़कर अगर सभी सीट पर लड़ जाते तो बीजेपी को हराने का श्रेय तो लेते वैसे भी इक-दो सीट तो आ ही सकता था। ऐसा करते तो कुशवाहा समाज को नेता मिलता लेकिन बीजेपी सरकार के साथ बिना काम व हैसियत के सुविधा की राजनीति से आप खुश हो सकते है, आपके लोग कतई नहीं। कुशवाहा समाज शोषित समाज दल और अर्जक आंदोलन के सामाजिक न्याय के मिजाज की जमात है जो किसी के पनीहार, बनिहार, भोंपू, पिछलग्गू के पीछे कभी नहीं जाती है। इसी कारण से कुशवाहा समाज नेे जगदेव बाबू के बेटे नागमणि तक को हमेशा के लिये छोड़ दिया और आपको भी लोकसभा-2014 में साथ देकर विधान सभा चुनाव- 2015 में हमलोगों ने छोड़कर आरजेडी- जेडीयू की सामाजिक न्याय की धारा का साथ दिया। कुशवाहा के नाम पर आप हमारा वैचारिक- बौद्धिक नेतृत्व कर सकते हैं लेकिन राजनीतिक ठेकेदारी करने की इजाजत यह जमात किसी को नहीं देता है जिसके अनेको उदाहरण सामने है जिससे आपलोगों को सीखना चाहिये था।
आपकी छवि को भद्र, शालीन, शरीफ मानने को कुशवाहा या ओबीसी समाज तैयार है लेकिन आपके ही लोगों ने आपकी कमजोर, दब्बू, मजबूर प्रतीत होने वाली छवि प्रमुखता से प्रचारित कर दिया है। आप कैसे संकट और संक्रमण से निपटेंगे आप बेहतर जानते हैं लेकिन आपको सवर्णपरस्ती छोड़कर अपने लोगों से जुड़ना होगा और अपनी सामाजिक न्याय की विचार धारा से आक्रमक तरीके से जुड़ना होगा। ओबीसी की 55% जमात बहुत बड़ी है इसकी राजनीति करनी होगी। पिछले दो-तीन सालों से आप लालू-नीतीशजी पर व्यक्तिगत कटाक्ष/आक्षेप की राजनीति कर रहे हैं यानि वो काम कर रहे है जो सिर्फ बीजेपी की लाइन को सूट कर रहा है और आपका मोरल- पॉलीटिकल लाइन खत्म हो रहा है। ये बात आपको समझ लेना होगा कि किसी ओबीसी नेता को गाली देकर कोई दूसरा ओबीसी नेता नहीं बन सकता है। आपको जानना चाहिये कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से समानांतर चलते हुये पोजिटिव क्रिटिसिज्म के साथ भी प्रतिरोध की धारा-विचारधारा को खड़ा कर राजनीतिक विकल्प तैयार होता है जिसे आपको अपनाना चाहिये था। आपकी वैचारिक छवि भी थोड़ी धुमिल हुई है जिससे मैं आहत हूँ।
आप नेता है तो ज्यादा बेहतर समझते होंगे। वैसे आपकी घटती लोकप्रियता और खत्म होते राजनीतिक वजूद का ऐहसास हम सभी को हो रहा है तो एक कुशवाहा होने से ज्यादा एक ओबीसी के नाते आपसे पूरी सदभावना एवं सहानुभूति जताता हूँ।
मेरी बात का तकलीफ लगे तो बुरा मत मानियेगा। वैसे भी हमलोगों पर आपका कोई कर्ज नहीं है उल्टे समाज का कर्ज ही आप ही पर है। लेकिन आपसे भावनात्मक लगाव होने के नाते मेरी इच्छा जरूर है कि आपका राजनीतिक वजूद बना रहे। अब ज्यादा नहीं लिखूंगा क्योंकि मै चाहता हूं कि मेरे थोड़े कहने से ही आप ज्यादा समझ जायें, जाग जायें।
जय शाहू- फुले! जय अम्बेडकर! जय पेरियार! जय जगदेव! जय मंडल! जय रालोसपा! सामाजिक न्याय जिन्दाबाद!!
आदर सहित,
आपका शुभचिंतक भाई।