शायरा की हिन्दी कविताओं के संग्रह‘रंग–ए–ज़िंदगी‘ का हुआं लोकार्पण
पटना,२९ नवम्बर। उर्दू और हिन्दी की चर्चित कवयित्री निकहत आरा साहित्य–संसार में एक ऐसा नाम है, जो साहित्य में गंगा–जामुनी संस्कृत की एक ख़ूब सूरत मिसाल बन गई हैं। निकहत उर्दू के साथ उसकी बड़ी बहन हिन्दी की भी उसी निष्ठा से सेवा कर रही हैं।
उनकी हिन्दी कविताओं का संग्रह ‘रंग–ए–ज़िंदगी‘इसका एक सुंदर उदाहरण है, जिसका लोकार्पण आज बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ऐतिहासिक सभागार में संपन्न हुआ है। इस पुस्तक में संकलित २५० कविताएँ,जीवन के विविध रंगों,उसके सुगंध और सौंदर्य की अभिव्यक्ति हैं। हिन्दी–संसार उनके इस अवदान का स्वागत करता है।
यह बातें आज यहाँ, साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में आयोजित पुस्तक–लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, दोनों भाषाओं में दख़ल होने के कारण इनकी कविताओं की भाषा भी गंगा–जमुनी है और दोनों की ख़ूबसूरती को पेश करती है।
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए,उर्दू के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो अलीमुल्लाह हाली ने कहा कि,शायरी की कोई ज़ुबान नही होती। यह दिल से निकालने वाली और दिल तक पहुँचने वाली चीज़ है। निकहत आरा की विशेषता यह है कि, ये एक जनूनी शायरा हैं। इनमे एक ग़ज़ब की वेचैनी है, जो इन्हें एक बड़ी कवयित्री बनाती है।
इसके पूर्व समारोह का उद्घाटन करते हुए, सेंट्रल बैंक औफ़ इंडिया के महाप्रबंधक और कवि महेश कुमार बजाज ‘अंजुम‘ने कहा कि, कवयित्री ने जीवन के सभी रंगों पर अपनी लेखनी चलाई है। इनकी भाषा ख़ूबसूरत और ज़ुबान पर चढ़ने वाली है। उन्होंने पुस्तक से कई कविताओं को पढ़कर उसकी बानगी पेश की।
उर्दू निदेशालय, बिहार के निदेशक और समारोह के मुख्य–अतिथि इम्तियाज़ अहमद करीमी ने कहा कि, हिन्दी और उर्दू एक हीं माँ की सगी बेटियाँ हैं। निकहत आरा ने हिन्दी में कविताएँ लिख कर इस बात की पुष्टि की है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, निकहत जी ने अपनी प्रभावशाली कविताओं से हिन्दी का भंडार भरा है,जिसके लिए उन्हें बधाई दी जानी चाहिए।
उर्दू और हिंदी के वरिष्ठ शायर काशिम खुर्शीद ने कहा कि, निकहत जी ने गंभीरता से कविताएँ लिख रही हैं। हिन्दी और उर्दू,दोनों में हीं इन्होंने संजीदगी से लिखा है। उन्होंने कहा कि, शायरी में जो लिखा जाता है, सिर्फ़ वही नही होता। जो नहीं कहा जाता है, उसे पढ़ा जाना चाहिए।
इस अवसर पर, वरिष्ठ कवि ध्रूव गुप्त, डा शंकर प्रसाद, कुमार अनुपम, मासूमा खातून,शमा कौसर ‘शमा‘,डा कल्याणी कुसुम सिंह, आरपी घायल,रमेश कँवल, डा मेहता नगेंद्र सिंह, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, शायरा सदफ इक़बाल, आराधना प्रसाद, शालिनी पाण्डेय, कवि घनश्याम,सागरिका राय, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा खुर्शीद अनवर,समीर परिमल, कामेश्वर कैमुरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
आपने कृतज्ञता ज्ञापन में कवयित्री निकहत आरा ने अपनी कविताओं के माध्यम से हीं बात की और लोकार्पित पुस्तक से कविताओं का पाठ किया। मंच का संचालन संयुक्त रूप से कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा अदबी अदारा इल्मी मजलिस के सचिव परवेज़ आलम ने किया। धन्यवाद–ज्ञापन आचार्य आनंद किशोर शास्त्री ने किया।