उत्तर प्रदेश सरकार के आधीन कार्यरत आधा दर्जन अल्पसंख्यकों से संबंधित संस्थान दो वर्षों से मात्र एक नौकरशाह के हवाले हैं नतीजतन ये तमाम संस्थान बे मौत मरने को मजबूर हैं.
उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल अकादमी, उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग, हिंदुस्तानी अकादमी, उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी के अलावा सिंधी अकादमी का अभी तक पुनर्गठन तक नहीं हो सका है. जबकि अखिलेश सरकार अपने कार्यकाल का दो साल पूरा करने वाली है.
ध्यान रहे कि राज्य अल्पसंख्यक आयोग को छोड़ कर बाकी के तमाम संस्थानों की जिम्मेदारी अकेले आईएएस ललित वर्मा के पास है. वर्मा प्रधान सचिव के स्तर के अधिकारी हैं जिन पर पहले से ही काम का काफी दबाव है.
नियमानुसार संबंधित संस्थानों की जिम्मेदारी ऐसे लोगों को दी जानी चाहिए जो अकादमिक पुष्ठभूमि के हों और संबधित क्षेत्र में विशेषज्ञता रखते हों.
लेकिन राज्य सरकार ने इन संस्थानों को नौकरशाह के हवाले करके एक तरह से इन संस्थानों को बिल्कुल नाकारा बना दिया है.
ललित वर्मा की हालत यह है कि बाकी के संस्थानों के लिए काम करना तो दूर उन संस्थानों के दफ्तरों में कभी आते जाते भी नहीं हैं. नतीजा यह है कि उर्दू अकादमी और फखरुद्दीन अली अहमद अकादमी पिछले दो सालों से मरणास्न्न की हालत में है.
दूसरी तरफ अखिलेश सरकार के अल्पसंख्यक संस्थानों के प्रति बेरुखी को देखते हुए अदालत ने उनके पुनर्गठन के लिए फटकार भी लगायी है. हाल ही में अदालत ने अल्पसंख्यक आयोग के पुनर्गठन का निर्देश दिया था पर राज्य सरकार ने इसे भी टालने की कोशिश की है और उसके पुनर्गठन के लिए दो महीने का समय मांगा है.
इस सिलसिले में बहुजन समाज पार्टी के सासंद सालिम अंसारी ने इंकलाब के पत्रकार मुमताज आलम रिजवी से बात करते हुए आरोप लगाया कि राज्य सरकार इन संस्थानों को बरबाद करने पर तुली है. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि क्या राज्य में ऐसे विद्वान उसे मिल नहीं रहे जिन्हें उर्दू अकादमी या फखरुद्दीन अली अहमद अकादमी का उपाध्यक्ष बनाया जा सके?