बेतुके बयानों और राजनीति व मजहब में घालमेल कर चर्चा बटोरने वाले टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम पद से मौलाना बरकाती का हटाया जाना हाल के बरसों में किसी भी मुस्लिम तंजीम द्वारा उठाया गया सबसे बड़ा व सूझ-बूझ वाला कदम है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
मौलाना नूरुर रहमान बरकाती को कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के बोर्ड आफ ट्रस्टी ने इमाम के पद से हटा दिया है. ट्र्स्ट के प्रमुख अनवर अली शाह का कहना है कि बरकाती के विवादित बयानों से मुस्लिम समाज का नुकसान हो रहा था और इसका फायादा आरएसएस जैसे कट्टरपंथी संगठनों को हो रहा था. शाह के इस तर्क से कोई भी संवेदनशील इंसान सहमत हो सकता है.
क्योंकि बरकाती बेतुके फरमान जारी करने के अलावा साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ बयान देने और यहां तक कि सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी को भी अपना निशाना बनाते रहे हैं. बरकाती ने हाल ही में अपनी गाड़ी से लाल बत्ती हटाने की मांग के विरुद्ध उन्होंने कहा था कि वह मोदी के कहने पर नहीं हटायेंगे लाल बत्ती.उन्होंने यह भी कहा था कि ममता बनर्जी कहें तो वह एक पल में लाल बत्ती हटा देंगे. जबकि बराकाती को मालूम होना चाहिए था कि पीएम मोदी ने लाल बत्ती कल्चर खत्म करने के लिए खुद अपनी गाड़ी से लाल बत्ती हटा दी थी. इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने भी खुद ही लाल बत्ती हटा दी थी.
बरकाती की राजनीतिक महत्वकांक्षा जग जाहिर रही है. वह मस्जिद के इमाम के पद का खूब बेजा इस्तेमाल करते रहे हैं. मस्जिद में प्रेस कांफ्रेंस करना, अपने पद की गरिमा को भुला कर मोदी और राज्य भाजपा के अध्यक्ष के खिलाफ बयान जारी करना, इमाम जैसे मह्तवपूर्ण पद पर रहने वाले के लिए कत्तई शोभा नहीं देता.
बरकाती ममता बनर्जी के करीबी माने जाते हैं. उनके मंचों पर भाषण देते हैं. यह किसी तरह से गलत नहीं है लेकिन वह इमाम रहते हुए अगर ऐसा करते हैं तो किसी भी तौर यह स्वीकार नहीं किया जा सकता. ट्र्सट के इस फैसले ने मुस्लिम तंजीमों को एक राह दिखाई है. इसकी प्रशंसा होनी चाहिए.