बिहार सरकार में बैठे हाकिमों के लिए यह शर्मनाक बात है. आईएएस जितेंद्र गुप्ता को रिश्वतखोरी मामले में अरेस्ट किया गया. जेल भेजा गया, सस्पेंड किया गया.गुप्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. बाईज्जत बरी हुए. न सिर्फ सस्पेंशन खत्म हुआ बल्कि जेल में गुजारे दिन को भी काम पर बिताया दिन मानने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा.
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इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
आला हाकिमों का यह रवैया प्याज खाने और डंडे सहने जैसा नहीं तो और क्या है? माजरा यह था कि मोहनिया के एसडीओ रहे जितेंद्र गुप्ता को जुलाई 2016 में निगरानी के अफसरों ने गिरफ्तार कर लिया. आरोप रिश्वतखोरी का था. आरोप था कि गुप्ता ने जीटी रोड पर ट्रकों से वसूली की. गिरफ्तारी के बाद गुप्ता ने कैमूर की एसपी हरप्रीत कौर पर संगीन आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने, हमें साजिश करके फंसवा दिया. गुप्ता ने इस मामले में तर्क पेश करते हुए कहा था कि उन्होने पत्र लिख कर हरप्रीत को कहा था कि जीटी रोड पर ट्रकों की जांच का अधिकार उनका नहीं है. इसलिए हरप्रीत ने इसे अपने ईगो पर ले लिया और रिश्वतखोरी की साजिश रची.
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जितेंद्र गुप्ता को कोर्ट से राहत
इसके बाद हुआ यूं कि गुप्ता जेल गये. उन्हें स्सपेंड किया गया. गुप्ता ने इस मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने उनके पक्ष में फैसला दिया. हाकिमों को यह रास नहीं आया. वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये. बड़े हाकिम की दलील सुप्रीम कोर्ट में भी टिक नहीं पायी और वहां से आदेश आया कि गुप्ता की निलंबन की अवधि के साथ-साथ हिरासत की अवधि को भी कर्तब्य पर बिताया गया सम माना. मजबूर हो कर हाकिमों को इस आदेश को मानना पड़ा.
इस मामले में हरप्रीत ने सफाई दी थी कि उनका इस गिरफ्तारी से कोई लेना-देना नहीं. गोवाया उन्होंने कोई साजिश नहीं रची. लेकिन जरा कीजिए कि लिखित में जीतेंद्र गुप्ता ने हरप्रीत को कहा था कि बतौर एसपी, सड़कों पर ट्रकों की जांच का अधिकार उनका नहीं है.
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मतलब यह कि हरप्रीत अपने अमलों के साथ ट्रकों की जांच करवाती थीं. एक आईएएस, जो बैच के लिहाज से उनसे जूनियर थे, ने उन्हें उनका कर्तब्य याद दिलाया तो मामला यहां तक आ पहुंचा. जितेंद्र ने रिश्वत नहीं ली, वे गुनाहगार नहीं थे यह अदालत ने साबित कर दिया. पर सवाल यह है कि हरप्रीत को अपने किये पर कुछ पछतावा हुआ? कुछ आत्मग्लानि हुई?
ध्यान रखने की बात है कि पिछले वर्ष जुलाई में जब गुप्ता को गिरफ्तार किया गया तो आईएएस एसोसिएशन ने इस गिरफ्तारी पर सख्त ऐतराज जताया था. अब सवाल यह भी है कि निगरानी के अफसरों ने हरप्रीत के बहकावे में आ कर जो किया इससे उन्हें भी सबक लेने की जरूरत है.