बिहार की भूमि कथाकारों व कथा साहित्य के लिए अत्यंत उर्वरा रही है। बिहार के कथाकार ही नहीं, शरतचंद्र और महाश्वेता देवी जैसी कथा-विभूतियों ने भी बिहार को अपनी कहानियों की भूमि बनाया था। उनकी कथाओं के विषय और संदर्भ भी बिहार से जुड़े रहे है। हिन्दी के प्रथम कथाकार संदल मिश्र से लेकर, आचार्य शिवपूजन सहाय, राजा राधिका रमण सिंह, राम वृक्ष बेनीपुरी, नागार्जुन, फ़णीशवरनाथ रेणु, प्रफ़ुल्लचन्द्र ओझा ‘मुक्त’, गोवर्द्धन प्रसाद सदय और मधुकर सिंह जैसे कथाकारों की एक बड़ी लम्बी परंपरा है।
‘कथा साहित्य में बिहार के योगदान’ विषय पर संगोष्ठी
यह विचार आज यहाँ बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में मनाये जा रहे हिन्दी पखवारा के सातवें दिन, ‘कथा साहित्य में बिहार के योगदान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य-वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान देते हुए, प्रसिद्ध कवि-कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने व्यक्त किए। अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि कथा साहित्य में बिहार के अवदान को इसी से समझा जा सकता है कि ‘कथा-सम्राट’ की उपाधि से विभूषित मुंशी प्रेमचन्द्र की अनेक कहानियां और उपन्यास, बिहार के इसी हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, परिषोधित और परिष्कृत किए गए। सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष और महान साहित्य-सेवी आचार्य शिवपूजन सहाय से अपनी पांडूलिपि दिखा कर ही प्रेमचन्द्र जी उनका प्रकाशन कराना पसंद करते थे।
संगोष्ठी में विद्वान समीक्षक और सम्मेलन के साहित्य मंत्री डा शिववंश पाण्डेय, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, डा कल्याणी कुसुम सिंह, अंबरीष कान्त, डा ओम प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, पं गणेश झा, विश्व मोहन चौधरी संत ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र ने किया। इस अवसर पर प्रो सुशील कुमार झा, बीरेन्द्र कुमार बिहारी, विपिन बिहारी वर्मा, कुमारी मेनका, राज कुमार प्रेमी, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, विनोद कुमार, सीता सिंह, श्याम भद्र, रामाशंकर शुक्ल तथा नेहाल कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।