कब बनेगी‘हिन्दी‘भारत की सरकारी भाषा? इस प्रश्न के साथ साहित्य सम्मेलन में मनाया गया हिन्दी दिवस समारोह
१४ हिन्दी सेवियों को किया गया सम्मानित , ‘पुस्तक–चौदस मेला‘ में बिकी हज़ारों की पुस्तकें
पटना,१४ सितम्बर। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आज ‘हिन्दी दिवस समारोह‘ बहुत धूमधाम से मनाया गया। पूर्व की भाँति इस वर्ष भी १४ हिन्दी–सेवियों को ‘साहित्य सम्मेलन हिन्दी सेवी सम्मान‘ से अलंकृत किया गया। विगत १ सितम्बर से जारी ‘हिन्दी पखवारा पुस्तक चौदस मेला‘में आज जम कर पुस्तकें ख़रीदी गईं।
इस अवसर पर ‘हिन्दी कब तक? विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने,एक विदेशी भाषा की विवशता को अविलंब समाप्त कर‘हिन्दी‘ को,उसके उचित आसान पर प्रतिष्ठित करने की माँग उठाई। समारोह का उद्घाटन करते हुए,राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मंधाता सिंह ने कहा कि,हिन्दी एक अत्यंत ससस भाषा है। हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि न्यायालयों में भी हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग हो और देश की राजकाज की भाषा भी यह शीघ बने इसलिए भी गंभीरता से विचार करना चाहिए।
समारोह के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के पूर्व अध्यक्ष प्रो शशिशेखर तिवारी ने कहा कि, जबतक संपूर्ण भारतवर्ष, हिन्दी को अपने मन–प्राण से नहीं जोड़ता, इस राष्ट्रीय भावना से नहीं देखता तबतक हिन्दी को वह स्थान नहीं मिल पाएगा, जिसकी वह अधिकारिणी है। जब हर स्थान से यह स्वर उठेगा, तो फिर इसे कौन रोकेगा?
सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, यह किसी भी राष्ट्र और समाज के लिए शर्म और चिता की बात है कि उसके राजकाज के लिए, उसकी अपनी कोई भाषा नही है। उधार ली गई एक विदेशी भाषा से ७० वर्षों तक काम लिया जा रहा है और देश की एक भी भाषा इस योग्य नही हो पाई कि उसे देश की राजकाज की भाषा बनाई जा सके, तो इससे बड़ा दुर्भाग्य किसी राष्ट्र के लिए क्या हो सकता है! यह सिद्ध करता है कि हम अभी भी मानसिक रूप से दास ही हैं, दासता से मुक्त नहीं हुए। हमें यह शीघ्र सुनिश्चित करना होगा कि ‘हिन्दी‘ सही अर्थों में कबतक देश की राजकाज की भाषा बन जाएगी।
डा सुलभ ने कहा कि बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन इस विषय को लेकर, इस वर्ष से देश व्यापी आंदोलन आरंभ करेगा। आगामी १९ अक्टूबर से आरंभ हो रहे सम्मेलन की स्थापना के शताब्दी–वर्ष में,देश की सभी प्रांतीय सरकारें भारत की सरकार को,पत्र लिख कर कहेंगी कि, देश की राजकाज की भाषा ‘हिन्दी‘बनाई जाए , यह सुनिश्चित किया जाएगा। हम भारत की सभी प्रांतीय सरकारों से यह आग्रह करेंगे कि, वे भारत सरकार को इस आशय का पत्र लिखें।
इसके पूर्व सम्मेलन अध्यक्ष ने,पुष्प–हार,वंदन–वस्त्र,प्
इस अवसर पर सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा कुमार अरुणोदय, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।