कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी का विकल्प केंद्रीय नेतृत्व को नहीं मिल रहा है। उनके विकल्प के रूप में कई दौर में कई नामों पर चर्चा हुई, लेकिन कोई सहमति नहीं मिल रही है। ऐसी स्थिति में अशोक चौधरी राज्य में शिक्षा मंत्री के साथ कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष भी बने रहेंगे। फिलहाल उनके अध्यक्ष पद पर कोई संकट नहीं दिख रहा है।
वीरेंद्र यादव
कांग्रेस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अशोक चौधरी के पक्ष में कई सकारात्मक घटनाएं हुईं। उनके अध्यक्ष बनने के बाद से लगातार पार्टी की हालत सुधर रही है। लोकसभा चुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस तीनों दलों की जबरदस्त पराजय हुई। उस समय जदयू अकेले चुनाव लड़ रहा था, जबकि राजद व कांग्रेस के बीच तालमेल था। इस पराजय ने तीनों दलों को एक साथ आने पर विवश कर दिया। इस दौरान अशोक चौधरी ने अध्यक्ष के रूप में कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिये। सबसे पहले वे राजद के समर्थन से खुद विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए। समर्थन इस मायने में कि विधान परिषद चुनाव में प्रस्तावक राजद के भी कई विधायक थे।
शर्त्त न जिद
इसके बाद विधान सभा के लिए 10 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में उन्होंने बिना किसी शर्त और जिद के राजद व जदयू के साथ गठबंधन में शामिल हो गए। इसका फायदा भी कांग्रेस को मिला। समझौते के तहत कांग्रेस को दो सीट मिली थी, उसमें से एक सीट जीतने में कांग्रेस कामयाब रही। विधान सभा चुनाव में गठबंधन के साथ पूरी एकजुटता के साथ वे जुड़े रहे। न शर्त, न जिद। फायदा जबरदस्त। पार्टी नेताओं को उम्मीद थी कि समझौते के कांग्रेस को 15- 20 सीटें मिलेंगी। लेकिन मिलीं 41 सीटें। चुनाव प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस की यह जबरदस्त सफलता थी। चुनाव परिणाम ने अशोक चौधरी को छप्पड़ फाड़ कर दिया। विधायकों की संख्या 5 से बढ़कर 27 हो गयी। ये सब चीजें अशोक चौधरी को मजबूत करती गयीं। उनके खिलाफ कोई नकारात्मक घटनाएं नहीं हुईं।
समीकरण भी पक्ष में
फिर सामाजिक समीकरण भी पक्ष में। राजद के प्रदेश अध्यक्ष पिछड़ा, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सवर्ण और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दलित। इस मोर्चे भी अशोक चौधरी की पौ-बारह। हासिए पर पहुंच गयी कांग्रेस को अशोक चौधरी ने मुख्यधारा में लाकर खड़ा कर दिया। सरकार में भागीदारी बनी और दस वर्षों बाद सत्ता में लौटी। फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह को पार्टी के विधानमंडल दल का नेता बना दिया गया, सो विरोध की संभावना भी समाप्त। यानी अभी कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं है अशोक चौधरी का। पार्टी के पास कोई चेहरा भी नहीं है। कांग्रेस के केंदीय संगठन में फेरबदल होने तक अशोक चौधरी की कुर्सी बरकरार रहेगी। फिर राजद प्रमुख लालू यादव व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ समन्वय करना भी अशोक चौधरी सीख गए हैं। इसलिए गठबंधन की ओर से भी कोई खतरा नहीं है।