पूर्व आईपीएस अधिकारी ध्रूव गुप्त, भोपाल जेल ब्रेक के बाद फरार सिमी के सदस्यों को मार गिराये जाने की परिस्थितियों के आधार पर बता रहे हैं कि कोई नौसिखुआ भी बता सकता है कि उन्हें फर्जी एनकाउंटर में मारा डाला गया.
भोपाल में कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे गए सिमी के कथित आतंकी अभी देश में चर्चा के केंद्र में हैं। इस घटना के बाद राजनेताओं द्वारा उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले धार्मिक आधार पर मतों के ध्रुवीकरण की कोशिशें तेज़ हो गई हैं। मारे गए आठों लोग आतंकी थे या नहीं, यह अभी साबित नहीं हुआ था। उनके खिलाफ न्यायालय में कई मामले विचाराधीन थे। जेल में अलग-अलग जगहों पर रखे गए वे सभी लोग घटना की रात किस तरह एक साथ एकत्र हुए, कैसे उन्होंने चादर के सहारे पैतीस फीट ऊंची दीवार फांदी और चम्मच से ताले खोल कर बाहर निकलने में सफल हुए, यह एक अबूझ रहस्य है।
उन्हें भगाने में जेल के ही कुछ कर्मचारियों ने मदद ज़रूर की होगी। हां, एक बात तो निर्विवाद रुप से साबित है कि भागने के क्रम में उन्होंने पलायन में बाधा देने वाले जेल के हेड कांस्टेबल रामाशंकर यादव की गला काटकर बेरहमी से हत्या की थी। जेल से भागने के आठ घंटों के भीतर जिस तरह पुलिस ने आठों अपराधियों को मार गिराया, वह बात भी गले नहीं उतरती। एनकाउंटर की परिस्थितियां समझने, एनकाउंटर का किसी पुलिस वाले द्वारा बनाया विडियो देखने और उसके बाद पुलिस अधिकारियों के परस्पर विरोधी बयान सुनने के बाद कोई नौसिखुआ भी दावे के साथ कह सकता है कि जेल से भागे आठों लोगों को पकड़ कर फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मारा गया है। जल्दबाजी में भोपाल पुलिस ने एनकाउंटर की जो पटकथा लिखी, वह बेहद बचकाना और मूर्खतापूर्ण थी।
मारे गए आठों अपराधी आतंकी थे, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन जेल से भागने की कोशिश में जिस जघन्य तरीके से उन्होंने इमानदारी से अपना फ़र्ज़ निभा रहे हेड कांस्टेबल यादव की हत्या की उससे यह तो निर्विवाद रुप से साबित है कि वे बर्बर अपराधी थे। ऐसे अपराधियों के मारे जाने का मुझे कोई अफ़सोस नहीं। किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की सहानुभूति उनके साथ नहीं हो सकती। हां, लोगों की सहानुभूति निर्मम हत्यारों की तरह फर्ज़ी एनकाउंटर में उन्हें मारने वाले पुलिसकर्मियों के साथ भी नहीं होनी चाहिए। पुलिस क़ानून की रक्षा के लिए होती है। अगर वह क़ानून को अपने हाथ में लेती है तो उसके साथ भी वही सलूक होना चाहिए जो हत्यारों के साथ किया जाता है। देश के संविधान और क़ानून से ऊपर कोई नहीं। जिस दिन मुजरिमों और पुलिस में फ़र्क मिटा दिया जाएगा, वह दिन लोकतंत्र की हत्या का दिन होगा।