भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों के लिए पानी पी-पी कर सिर्फ पाकिस्तान को कोसने वाले बुद्धिजीवियों की आंखें क्या अब भी खुलेंगी?
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट काॉम
शुक्रवार को दुनिया ने साफ देख लिया कि भारत विरोधी आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की पीठ पर हिमालय की तरह चीन खड़ा है. पाकिस्तान अपने इसी सहयोगी के बूते भारत में आतंकवाद की घटनायें अंजाम देता है और भारत उसके खिलाफ निर्णायक कदम नहीं उठा पाता. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने जैश ए मुहम्मद के सरगना मसऊद अजहर के खिलाफ पाबंदी का प्रस्ताव लाया था. अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस समेत दुनिया भर के तमाम देश भारत के इस प्रस्ताव के समर्थन में खड़े थे. लेकिन यह चीन ही था जिसने वीटो के अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर इस प्रस्ताव को गिरा दिया. नतीजा सामने है. अजहर के खिलाफ पाबंदी लगवाने की भारत की कोशिश नाकाम हो गयी.
पाकिस्तान का आका चीन
लेकिन अकसर हम इस पूरे मामले में पाकिस्तान का असली आका चीन की भूमिका को नजर अंदाज कर देते हैं. लेकिन बीते शुक्रवार को चीन ने भारत के खिलाफ जो करतूत पेश की वह हमारी आंखें खोलने वाली हैं. यह वही चीन है जिसने हम पर 1962 में युद्ध थोपा. हमारे बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया. और लगातार हमारे सीमाओं में घुसपैठ करने की जुर्रत करता रहता है. यह चीन ही जो नेपाल जैसे हमारे पडोसी के खिलाफ उसे भड़काता रहता है. इतना ही नहीं भारत में अंजाम दे जाने वाली आतंकवादी घटनाओं में जो अत्याधुनिक असलहे इस्तेमाल किये जाते हैं उनमें से ज्यादातर चीन निर्मित होते हैं. इसके प्रमाण कई बार मिल चुके हैं. इतना ही नहीं यह चीन ही है जो पाकिस्तान को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए उसे आर्थिक और सामरिक मदद करता है. संदेह नहीं कि अप्रत्यक्ष रूप से दशकों तक अमेरिका भी करता रहा है पर वह चीन की तरह हमारा पड़ोसी नहीं.
निश्चित तौर पर पाकिस्तान अपने अस्तित्वकाल से ही भारत विरोध की हर संभावित कोशिश को जारी रखता है. आधिकारिक तौर पर उसने हम पर तीन-तीन युद्ध थोपा. अनाधिकारिक रूप से उसने कारगिल जैसे भीषण युद्ध में हमें घसीटा. इतना ही नहीं भारतीय सीमा में पाकिस्तानी आतंकवादी समुहों की घुसपैठ और मुम्बई व पठानकोट जैसे आतंकवादी आक्रमण के पीछे भी उसी का हाथ है. इन सब बातों के बावजूद अगर हम इसके लिए सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान को कोसने की मानसिकता के शिकार हैं तो इसके कई कारण हैं.इन कारणों को समझने की जरूरत है. भारत और पाकिस्तान का सत्ताधारी वर्ग दोनों देशों के अवाम के अंदर देशभक्ति की घृणावादी सिद्धांत का आसान रास्ता अपनाते हैं. भारत, अपने नागरिकों के पाकिस्तान विरोधी भावनाओं को जगाये रख कर उनका ध्यान विकास, रोजगार और स्वास्थ्य जैसी मूल समस्याओं से हटाने की कोशिश करता है. यही मार्ग पाकिस्तानी सत्ताधारी वर्ग भी अपनाता है. नतीजतन दोनों देशों के बीच आपसी संबंध मजबूत बनाने के प्रयास कामयाब नहीं होते.
आखिर क्यों?
तो सवाल है कि चीन, जिसने हमें युद्ध में धकेला, हमारी भूमी पर नाजायज कब्जा की. आतंकवाद को शह दे कर वह हमारे खिलाफ पाकिस्तान का उपयोग करता है फिर भी हमारे देश में चीन के खिलाफ जनमत क्यों नहीं बन पाता? क्या भारत के नेतृत्ववर्ग का चीन की कारिस्तानियों के खिलाफ भारत में जनमत तैयार करने के बजाये पाकिस्तान के खिलाफ जनमानस को प्रेरिरत करना अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए है.और क्या ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान विरोध की मानसिकता भारत के नेतृत्ववर्ग के लिए चीन विरोधी मानसिकता से ज्यादा लाभकारी है?