पूर्व आईएएस अफसर व राजनीतिक विश्लेषक एमए इबराहिमी का मानना है कि सीएम जीतन राम मांझी से कटुता मोल ले कर नीतीश ने अपने राजनीतिक खुदकुशी की तरफ कदम बढ़ा दिया है.
8 फरवरी को दिल्ली के बिहार निवास में मांझी की प्रेस कांफ्रेंस से यह तय हो गया कि अब वह नीतीश कुमार के लिए बहुत बड़ी राजनीतिक चुनौती बन कर सामने खड़े होंगे.
2010 असेम्बली चुनाव में बड़ी कामयाबी हासिल करने के अहंकार से भरे नीतीश कुमार के सितारे अब गर्दिश में आ चुके हैं. वह यह भूल चुके हैं कि उनकी कामयाबी में भारतीय जनता पार्टी का बहुत बड़ा योगदान रहा है.
मुगालते का शिकार
बिहार में अपनी लोकप्रियता को सार्वभौमिक समझने वाले नीतीश इसी गफलत में आ कर पीएम बनने का दिवास्वपन देखना शुरू कर दिया. इसके लिए उन्होंने हर वह चाल चली ताकि वह 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में एनडीए के पीएम प्रत्याशी बनाये जा सकें लेकिन जब उन्होंने देखा कि नरेंद्र मोदी के सामने उनकी कोई गुंजाईश नहीं तो उन्होंने सेक्युलर और मुस्लिम कार्ड खेलना शुरू कर दिया, जबकि वह कभी भी मुसलमानों में लोकप्रिय नहीं रहे.
राजनीतिक महत्वकांक्षा
नतीजा यह हुआ कि उन्हें लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए और राज्यसभा में अपने दो नुमाइंदों को पहुंचाने के लिए नीतीश ने अपने 20 वर्ष पुराने विरोदी लालू प्रसाद के सामने घुटने टेक दिये.
एक बार फिर उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा जाग उठी है लेकिन इस बार न तो जीतन राम मांझी और न ही राज्य के गवर्नर उनके लिए कोई गुंजाईश छोड़ने वाले हैं. ऐसे में नीतीश की कोशिश यह होगी कि वह बिहार की जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए सड़कों पर उतर सकते हैं और यह जताने का प्रयास कर सकते हैं कि उनके संग केंद्र सरकार ने नाइंसाफी की है. ऐसे में लालू प्रसाद भी उनके लिए बहुत सहायक नहीं साबित हो सकते हैं.
ऐसे में इस बात की प्रबल संभावना है कि बिहार में एक नये राजनीतिक परिदृश्य उभर कर सामने आयेगा. हमें इतंजार करना चाहिए.
एमए इबराहिमी बिहार कैडर के पूर्व आईएएस हैं. फिलहाल दिल्ली में रहते हैं और सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस करते हैं. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं
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