जब खापनुमा संगठन इस देश का कानून अपने हाथों में ले ले और एक कथित गुनाहगार को पीट-पीट कर जान ले ले तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि हम अघोषित गृहयु्द्ध की तरफ बढ़ रहे हैं.civil.war

वसीम अगरम त्यागी

रियाज’ के गुनहगार आप भी हैं एक जानवर की कीमत एक इंसान की जान से ज्यादा कैसे हो सकती है ? जिस तरह से शामली में रियाज नाम के युवक को पीटा गया है वह बताता है कि यह मामला सिर्फ गाय का नहीं है बल्कि एक समुदाय के खिलाफ दूसरे समुदाय के  के कुछ लोगों के दिमाग में नफरत का जहर भर दिया गया है .

यह घटना न तो पहली है और न ही आखिरी. गौ रक्षा के नाम पर इंसानों के साथ हैवानियत दिखाने वाले वीडियो समय-समय पर सामने आते रहते हैं। लेकिन अब तक ये देखा गया था कि एसे वीडियो वही होते हैं जहां पर सिर्फ दो पक्ष होते हैं एक गौरक्षा वाला और दूसरा कथित तौर से गौकशी करने वाला, शामली की घटना उन घटनाओं से बहुत अलग है, जिस व्यक्ति को बेरहमी से पीटा गया उसे पीटने वाले उसी शहर के उसी क्षेत्र के लोग हैं, यह घटना दिन में हुई है, शहर में हुई है, सैंकड़ों लोगों के बीच में हुई है।

गंभीर सवाल

सवाल यहीं से पैदा होता है कि क्या उन सैंकड़ों लोगों में कोई भी एसा व्यक्ति न था जिसे अपने जैसे ही दूसरे इंसान को इस तरह पिटते हुए देखना नागवार गुजर रहा हो ? पुलिस इस पूरी फिल्म से नदारद है क्या पुलिस को यह जानकारी नहीं थी कि बजरंग दल के कार्यकर्ता एक व्यक्ति को सरे आम लाठी, डंडों, बेल्टों से पीट रहे हैं, और अल्पसंख्यकों के खिलाफ भद्दी नारेबाजी कर रहे हैं? पुलिस उस वक्त क्या कर रही थी ? क्यों ये लोग कानून से ऊपर होकर खुद का कानून लागू कर रहे थे?  क्या वहां पर मौजूद भीड़ में से किसी ने अपने आप से सवाल न किया होगा कि उन्होंने एक इंसान को आज बेरहमी से पिटते हुए देखा ? क्या वीडियो बनाने वाले फोटोग्राफर के हाथ जरा भी नहीं कांपे होंगे जब उसके सामने उसके ही जैसे व्यक्ति के हंटर मारे गये और उसके मुंह से आह निकल रही थी?

इंसान जानवर भी बन जाता है और कभी-कभी जानवरों से भी ज्यादा गिरी हई हरकत कर जाता है, शामली की घटना उसी की एक बानगी है, मगर वे लोग जो वहां पर एक ‘गौ हत्यारे’ को सबक सिखाने का तमाशा देख रहे थे और इस घटना के चश्मदीद भी हैं वे भी इसमें कम दोषी नहीं हैं।

यह देश अघोषित गृह युद्ध से गुजर रहा है, खुद को धर्म विशेष का हितेषी कहने वाले आये दिन इंसानों की बलि ले रहे हैं, जिस तथाकथित राष्ट्रवाद की भट्ठी में इन्होंने इस नफरत को पकाया है, जवान किया है, वह जरूर सोचने पर मजबूर करती है। एसी घटनाओं के वक्त गंगा जमुनी संस्कृति के अलंबरदारो, सैक्यूलरों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। मगर अफसोस उस वक्त होता है जब एक के बाद एक इस तरह की मानवता को शर्मसार करने वाली घटनायें हो जाती हैं और खुद को सैक्यूलरिज्म के अलंबरदार कहने वालों के होंठ सिल जाते हैं।

और भी उदाहरण

जनवरी 2012 में पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद में बीएसएफ के जवानों ने गौ तस्कर को कड़ाके की सर्दी में नंगा करके पीटा था,उसके हाथ पैर बांधकर, उसके नंगे कूल्हों पर लाठियों से प्रहार किये थे जिससे उसकी मौत हो गई थी। उस गौ तस्कर को पीटते वक्त जो भाषा बीएसएफ के वे जवान इस्तेमाल कर रहे थे वही भाषा सैंकड़ों की भीड़ के सामने शामली में दिनदहाड़े दोहराई गई है। क्या देश के लोगों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे इस तरह की घटनाओं के वक्त अपना मौन तोड़कर इन आततइयों के खिलाफ उठ खड़े हों ? या वे खामोश रहकर इस तरह की घटनाओ का मौन समर्थन करते हैं? अगर भावनाओं से ही सबकुछ होता है तो फिर पुलिस, कोर्ट कचहरी किसलिये है?

फिर तो चंद सरफिरे लोगों को इकट्ठा कीजिये, अपनी खाप नुमा संगठन में उन पर बगैर कोई मुकदमा दर्ज कराये उसको शहर के बीचों बीच लाकर मार दीजिये ? क्या एसा करने से हम एक सुपर पॉवर बन जाने का ख्वाब पूरा कर सकते हैं ? यह सवाल बार – बार इन आताताई संगठनों से नहीं बल्कि उन लोगों से पूछा जायेगा जिन्होंने एसी घटनाओं के वक्त अपना मौन तोड़ा ही नहीं। जो लोग इस घटना के चश्मदीद गवाह हैं वे सब शामली के रियाज के गुनहगार हैं, जिन लोगों ने इस अमानवीय व्यवहार पर तालियां बजाईं हैं उनके मानसिक संतुलन को मापने की जरूरत है।

प्रशासन का चेहरा बेनकाब

जिन पुलिस वालों ने मौके पर आकर उस पिटते हुए इंसान को नहीं बचाया वे भी इस घटना के प्रति जवाबदेह हैं। और सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है, शासन और प्रशासन की क्यों इस तरह के संगठनों को पनपने की आजादी दे रखी है ? क्यों वे सरे आम संविधान की धज्जियां उड़ाने का अधिकार रखते हैं ? क्यों ये किसी भी शहर को शोलों में तब्दील कर देने की ताकत रखते हैं ? ये चंद सवाल अबसे पहले भी उठ चुके हैं मगर जवाब नहीं मिल पाता।

हम कितने सभ्य समाजी हैं एसी घटनाऐं समय- समय पर हमारा पोल खोल देती हैं, कि हम जिस सभ्य समाजी होने का ढ़िढ़ोंरा पीट रहे थे उसका जनाजा इस तरह के खापनुमा संगठनों ने काफी पहले निकाल दिया है।

By Editor

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