पितरों के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने और उन्हें मोक्ष देने का महापर्व पितृपक्ष आज से मोक्षनगरी गया में शुरू हो गया । पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करने का महापर्व है।
पितृपक्ष की अवधि में पूरे एक पखवाड़े तक पितृगण अपने परिजनों के समीप विविध रूपों में मंडराते हैं और अपनी मोक्ष की कामना अपने वंश के लोगों से करते हैं। अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। आज से आरंभ हुआ पितृपक्ष आगामी 12 अक्टूबर तक चलेगा और इसी दिन पितृ विसर्जन के साथ इस महापर्व का समापन हो जायेगा। इस दौरान पखवाडे भर तक देश-विदेश से गया पहुंचे लाखों श्रद्धालु तर्पण कर अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे और पितृऋण से मुक्ति की कामना करेंगे।
शास्त्रों में तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं- देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण। इनमें पितृऋण से उबरने के लिए श्राद्ध बहुत जरूरी है। जिस व्यक्ति का जैसा सामर्थ्य होता है, उसे उसके अनुरुप ही श्राद्ध अनुष्ठान करवाना चाहिए। हिन्दू परम्परा में पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान को श्राद्ध कहते हैं। मान्यता है कि जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई होती है, उसी तिथि को पिण्डदान करना चाहिए।लोक मान्यता है कि गया तीर्थ की यात्रा करते ही नरक में पड़े पितृ स्वर्ग की ओर जाने लगते हैं।