गीत के शलाका पुरुष थे आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री
महनीय है चिंतन–साहित्य में पं शिवदत्त मिश्र का अवदान
दोनों साहित्यिक विभूतियों की जयंती पर साहित्य सम्मेलन में दी गयी गीतांजलि
हिंदी साहित्य के पुरोधा और गीत के शलाका–पुरुष आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री बिहार के हीं नही, साहित्य–संसार के गौरव–स्तम्भ थे। वे संस्कृत और हिंदी के मूर्द्धन्य विद्वान तो थे हीं साहित्य और संगीत के भी बड़े तपस्वी साधक थे। कवि–सम्मेलनों की वे एक शोभा थे। अपने कोकिल–कंठ से जब वे गीत को स्वर देते थे,हज़ारों–हज़ार धड़कने थम सी जाती थी। कवि–सम्मेलनों के मंच पर उनकी बराबरी राष्ट्र–कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर‘और गीतों के राज कुमार गोपाल सिंह नेपाली के अतिरिक्त कोई भी नहीं कर सकता था।
यह बातें आज यहाँ महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री और चिंतन–धारा के साहित्यकार पं शिवदत्त मिश्र की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, यदि बिहार में जानकी जी और नेपाली जी नहीं होते तो हिंदी साहित्य से गीत की अकाल मृत्यु हो जाती। शास्त्री जी ने अपनी साहित्यिक–यात्रा संस्कृत–काव्य से आरंभ की थी। किंतु महाप्राण निराला के निर्देश पर उन्होंने हिंदी में काव्य सृजन आरंभ किया और देखते हीं देखते गीत–संसार के सुनील आसमान में सूर्य के समान छा गए। साहित्य की सभी विधाओं में जी भर के लिखा। कहानी,उपन्यास, संस्मरण, नाटक और ग़ज़लें भी लिखी। उनके गीतों से होकर गुज़रना दिव्यता के साम्राज्य से होकर गुज़रने के समान है।
डा सुलभ ने पं शिवदत्त मिश्र को स्मरण करते हुए कहा कि, मिश्र जी एक संवेदनशील कवि और दार्शनिक–चिंतन रखने वाले साहित्यकार थे।‘कैवल्य‘ नामक उनके ग्रंथ में, उनकी आध्यात्मिक विचार–संपन्नता और चिंतन की गहराई देखी जा सकती है। वे साहित्य में उपभोक्ता–आंदोलन के भी प्रणेता थे। वे एक मानवता–वादी सरल और सुहृद साहित्यसेवी थे। साहित्य–सम्मेलन के उद्धार के आंदोलन में उनकी अत्यंत मूल्यवान और अविस्मरणीय भूमिका रही। वे सम्मेलन के यशमान उपाध्यक्ष रहे। वे एक समर्थ कवि और संपादक थे।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने महाकवि के साहित्यिक–कृतित्व की सविस्तार चर्चा की तथा उन्हें गीत का शिखर–पुरुष बताया।
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ स्वर्गीय शिवदत्त जी की पत्नी और कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी–वंदना से हुआ। सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र‘करुणेश‘ ने अपनी ग़ज़ल पढ़ी-
“सूखा सूखा कहीं,कहीं डूबा है, पानी पानी है/ कैसे फ़सल उगे जब मौसम की मनमानी है
/टुकड़े टुकड़े में बाँट–बँट कर, आपस में जल मार काट कर, क्या कौन सा काम देश का, यह कैसी क़ुर्बांनी है/”
उन्होंने भारत सरकार से जानकी जी के लिए‘भारत–रत्न‘प्रदान करने की माँग की।
वरिष्ठ कवि डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल पेश की
“आँधियों में एक दीपक जल गया/ देखते हीं देखते ये तो अजूबा हो गया“
को तर्रनुम से सुनाकर श्रोताओं का दिल जीता। वरिष्ठ कवयित्री कालिन्दी त्रिवेदी ने बसंत को आने का न्योता देते हुए कहा कि,
“ऋतुराज बसंत के आने का संदेश देखो आया है/ कलियों ने अवगूँथन खोले, भँवरों ने गीत सुनाया है।“
डा कल्याणी कुसुम सिंह ने कहा कि,
“ सरोवर के पास जब होती हूँ/ कमलों से प्यार किया करती हूँ/घंटों पानी में कंकड़ को फेंक–फेंक/सौंदर्य निहारा करती हूँ।“
वरिष्ठ शायर नाशाद औरंगाबादी ने कहा कि,
“जिस शख़्स के माथे पे पसीने नहीं आते/उसको कभी जीने के क़रीने नहीं आते“।
आरपी घायल का कहना था कि,
“अभी भी है हवाओं में अजीमाबाद की ख़ुशबू/ बुज़ुर्गों की दुआओं में अजीमाबाद की ख़ुशबू/
गुलों को चूमकर घायल हमें महसूस होता है/ अभी भी है गुलाबों में अजीमाबाद की ख़ुशबू।“
कवयित्री डा सुधा सिन्हा ने कहा कि,
“जिससे प्यार किया सभी पराए बन गए/ ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझ में नहीं आता।“
डा सुलक्ष्मी कुमारी का कहना था कि,
“हम आते रहे हैं/ हम आते रहेंगे/ ये जन्मों का रिश्ता निभाते रहेंगे“।
संजू शरण ने कहा कि,
“उम्मीदें टूटती है तो दिल रोता है/सपने टूटते हैं दिल रोता है।“
कवि बच्चा ठाकुर, राज कुमार प्रेमी, पंकज कुमार वसंत, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डा एम के मधु, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, जय प्रकाश पुजारी, मनोरमा तिवारी, परवेज़ आलम, डा रामाकान्त पाण्डेय, प्रभात कुमार धवन, सच्चिदानंद सिन्हा, चंद्र भूषण,डा राम गोपाल पाण्डेय,नेहाल कुमार सिंह,राज किशोर झा तथा कृष्ण मोहन मिश्र ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।
संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।