पटना, ‘गीतों के राज कुमार’ गोपाल सिंह ‘नेपाली’ तथा गीत के शलाका-पुरुष आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जैसे उर्जावान गीतकार नही होते तो कदाचित हिन्दी साहित्य से गीतों की अकाल मृत्यु हो गयी होती।DSC_3893

 

गीत बेमौत मर गये होते। जिन दिनों हिन्दी साहित्य में अप्रचलित शब्दों का चयन कर पाठकों के समक्ष भारी-भरकम दिखने के लिये, सरलता से समझ में न आने वाले और कविता के प्राण-तत्त्व छंदों का त्याग कर कविताएं रची जाने लगी थी और ऐसी हीं कविताएं, विद्वान समीक्षकों और संपादकों की समझ से पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने के योग्य थीं, हिन्दी के इस अत्यंत प्रतिभाशाली युवा गीतकार और अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि गोपाल सिंह नेपाली ने गीत का अलख जगाये रखा और इस अत्यंत मनोहारी सुकुमार विधा को हिन्दी साहित्य में बचाये रखा। “मेरा धन है स्वाधीन कलम” का वह कवि, जो हिन्दी गीतों का अनमोल हीरा था, यदि असमय क्रूर काल का आहार नही बना होता तो हम उन्हें ‘गीतों के राज कुमार’ के रूप में नही, ‘गीत-सम्राट’ के रूप याद करते। हिन्दी-साहित्य के, प्रतिभा के इस क्षरण-काल में हमे नेपाली बड़ी शिद्दत से याद आते हैं।

 

यह विचार आज यहाँ साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित, नेपाली जयंती व कवि-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किये। डा सुलभ ने कहा कि, नेपाली की काव्य-प्रतिभा ने अपने काल के सभी विद्वानों को चमत्कृत कर दिया था। उनके काव्य-पाठ की उर्जा भी अद्वितीय थी। वे रात-रात भर कविताओं का पाठ कर सकते थे। और उनको सुनते हुए, सुधी श्रोता अघाते न थे। उनके निधन से हिन्दी-काव्य के आकाश से एक बड़ा नक्षत्र टूट गया।

जन्माष्ठमी को जन्म

इसके पूर्ब समारोह का उद्घाटन करते हुए, विश्वविद्यालय सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा वरिष्ठ साहित्यकार, प्रो शशिशेखर तिवारी ने कहा कि, हिन्दी साहित्य की आत्मा का स्पंदन नेपाली के गीति-काव्य में मिल सकता है। यह दुखद है कि साहित्यालोचकों ने नेपाली जी को वह सम्मान नही दिया, जिसके वे अधिकारी थे। नेपाली के काव्य में प्रेम और मानव-शौर्य की विराट अभिव्यक्ति होती है। नेपाली जी का जन्म वर्ष 1911 में ‘जन्माष्टमी’ के दिन हुआ था। इसीलिए उनके पिता ने उनका नाम ‘गोपाल’ रखा।

 

सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त ने अतिथियों का स्वागत करते हुए नेपाली जी के साथ बिताये अपने संस्मरणों के साथ स्मरण किया। उन्होंने कहा कि नेपालीजी के अंतिम दिनों में उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। अपने तिरोधान के दो दिन पूर्व हीं उन्होनें मेरे आवास पर हमारे साथ भोजन किया था। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, राजस्व प्रर्षद, बिहार के पूर्व अध्यक्ष आनंद वर्द्धन सिन्हा, डा विनोद कुमार मंगलम ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये।

 

 

इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी में, कवि घमण्डी राम ने सावन और प्रकृति के सौंदर्य को इन शब्दों में मुखरित किया कि,” मौसम है रंगरेज गुलाबी/ गाँव नगरिया रंग दे रे / तीस करोड़ बसे धरती की हरी चुनरिया रंग दे रे’। आचार्य आनंद किशोर शास्त्री का कहना था कि, “धरती डोले, अंबर डोले, तू मत डोल जवानों / वीर प्रसुता भारत माता की जय बोल जवानों”।

व्यंग्य के कवि ओम प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने सामयिक विषय लेते हुए महात्मा गाँधी के तीन बंदरों का स्मरण इस तरह कराया कि, “शराब मत बोलो, शराब मत देखो, शराब मत सुनो”। अध्यक्ष डा सुलभ ने भी काव्य-कर्म की वेदना की अभिव्यक्ति इन शब्दों में की कि, “जब से नेह लगाया तुमसे जीवन जला लिया / कविता सुंदरी तुने कैसा पागल बना दिया”। सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र, कवि राज कुमार प्रेमी, अमियनाथ चटर्जी, बच्चा ठाकुर, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, कमलेन्द्र झा कमल, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कुंद्न आनंद, बांके बिहारी साव, मोहन दूबे, डा वीणा कर्ण, शालिनी पाण्डेय, डा गोपाल शरण सिंह तथा कुमारी मेनका ने भी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।

 

By Editor


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