मौजूदा चुनाव में कथित मोदी लहर और भाईचारे की राजनीति की दुहाई देने वाली भाजपा अचानक घृणा की राजनीति के अपने मूल रंग में क्यों वापस आ गयी है? यह हार की हताशा का परिणा तो नहीं है?
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
अभी तक देश की लगभग एक तिहाई लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए हैं और इतने दिनों में भाईचारे की दुहाई देने वाली भाजपा अचानक नफरत और द्वेष के अपने असल रंग में आ गयी है तो इसके निहतार्थ पर जरूर गौर किया जाना चाहिए. अभी तक उत्तर प्रदेश में 80 में से 28 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं. इसी तरह बिहार की 40 सीटों में से अब तक 13 पर चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं. ये दोनों वही राज्य हैं जहां से भाजपा को सत्ता की चाबी चाहिए. पर सत्ता पाने के लिए बेचैन भारतीय जनता पार्टी ने अचानक अपने भाईचारे के नारे को त्याग दिया है तो निश्चित तौर पर उसने औंधे मुंह गिरने की संभावनाओं के मद्देनजर ही अपने व्यवहार में परिवर्तन लाया है.
ध्यान देने की बात है कि नफरत भरे बयान भाजपा के वरिष्ठम नेताओं में से एक और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष निति गडकरी और मोदी के खास आदमी माने जाने वाले व बिहार के पूर्व मंत्री गिरिराज सिंह ने दिये हैं. इनके बयान की टाइमिंग भी काफी रोचक है. इन दोनों नेताओं ने यह बयान दूसरे फेज के चुनाव के तत्काल बाद दिये.
गडकरी
नितिन गडकरी ने जहां पटना में प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि बिहार के डीएनए( खून) में जातिवाद भरा है. गडकरी के इस बयान की गंभीरता को समझने की जरूरत है. 13 सीटों के चुनाव समाप्त हो जाने के बाद गडकरी ने ये बात इसलिए कही कि उन्हें पता चल चुका था कि 13 सीटों पर हुए चुनावों में बिहार के लोगों ने कथित मोदी लहर को नकार कर पिछड़ों के नेतृत्व वाली पार्टियों- जद यू और राष्ट्रीय जनता दल को वोट दिया, जिसका खामायाजा भारतीय जनता पार्टी को भुगतना पड़ सकता है. गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं, और ऐसे में उनके बयान को इग्नोर नहीं किया जा सकता. इस बयान के द्वारा गडकरी के खुन्नस को समझा जा सकता है क्योंकि जब वह यह बयान दे रहे होते हैं तो उन्हें पता है कि वह क्यो बोल रहे हैं और उन्हें यह भी पता है कि ‘बिहार के खून में जातिवाद’ की बात कह कर वह बिहार के 10 करोड़ अवाम को अपमानित कर रहे हैं. फिर भी उन्होंने यह बयान दिया तो इसका मतलब साफ है कि भाजपा का नारा ‘अबकी बार मोदी सरकार’ को बिहार ने नकार दिया है. अगर उन्हें इसका एहसास नहीं हुआ होता तो वह बिहार की जनता को अपमानित करने का जोखिम क्यों उठाते?
गिरिराज सिंह
गिरिराज सिंह नफरत भरे बयान देने वाले भाजपा के नये अवतार के रूप में सामने हैं. पिछले साल वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जमीन में गाड़ देने की बात कह कर अपना रूप दिखा चुके हैं. लेकिन इस बार गिरिराज ने मोदी का विरोध करने वालों को पाकिस्तान भगाने जैसा बयान भी 18 अप्रैल को दिया. इससे पहले 17 अप्रैल को नवादा में, जहां से वह लोकसभा कंडिडेट हैं, चुनाव हो चुका है. गिरिराज के इस बयान में निश्चित तौर पर उनके संभावित हार का खुन्नस ही है. वहां से राजबल्लभ यादव के साथ उनकी कांटे की टक्कडर थी. उनका भाग्य ईवीएम में कैद हो चुका है.
लेकिन जैसे ही वह दूसरे दिन झारखंड की सभा में गये अपने मन की व्याकुलता को दर्शा दिया. इससे जाहिर है कि उन्हें अपनी जीत के प्रति पूरा संदेह है. क्योंकि पिछले छह महीने में भाजपा लगातार भाईचारे, विकास और नरेंद्र मोदी की कथित लहर को मुद्दा बना रही थी. लेकिन अचानक ऐसा बयान उन्होंने दिया जिसके कारण एक खास समुदाय के प्रति जहर फैला और नतीजे में उनपर एफआईआर तक हुआ. अगर गिरिराज को यह एहसास होता कि वह जीत रहे हैं तो किसी कीमत पर अपने ऊपर कानूनी तलवार को दावत देने का जोखिम नहीं लेते.
गडकरी-गिरिराज के बयान के कड़वा सत्य को समझिए. यूं ही कोई इतना संवेदनशील बयान नहीं दे सकता.
फ्रस्ट्रेशन से भरा यह बयान साबित करने के लिए काफी है कि नवादा से गिरिरिाज हार रहे हैं. और कुल मिला कर अब तक बिहार में हुए 13 लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा औंधे मुंह गिर रही है. कारण ? कारण यह कि गडकरी ने कहा कि बिहार के खून ( डीएनए) में जातिवाद भरा है, मतलब जाति में बंटे लोगों ने साम्प्रदायिक आधार पर भाजपा को वोट नहीं दिया. इसलिए वह बाकी की 27 सीटों पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं.
वहीं गिरिराज ने जब यह कहा कि मोदी विरोधी देश विरोधी हैं और उनकी जगह पाकिस्तान है मतलब वह एक सम्प्रदाय से इतने खफा क्यों हुए? क्योंकि उन्हें दो फेज के चुनाव से पता चल चुका है कि मोदी का विरोध करने वालों ने भाजपा को सबक सिखा दिया.
परवीण तोगड़िया
गडकरी- गिरिराज ने 17 अप्रैल के चुनाव खत्म होते ही बिहार-झारखंड में नफरत फैला कर बहुसंख्यक समुदाय को गोलबंद करने की कोशिश की तो दूसरी तरफ 20 अप्रैल को विश्व हिंदू परिषद के नेता परवीण तोगड़िया ने गुजरात में मुसलमानों को निशाना बनाते हुए कहा कि हिंदू इलाकों में जमीन खरीदने वाले मुसलमानों के घरों पर कब्जा करो और उन्हें खदेड़ दो. यह कह कर उन्होंने हिंदू समुदाय के लोगों के दिलों में मुसलमानों के प्रति घृणा पैदा करके समाज को बांटने की साजिश की. शायद उन्होंने यह बात कहने के लिए गुजरात को इसलिए भी चुना कि वहां भाजपा की सरकार है, पर उन्हें पता है कि अभी आचार संहिता लागू है और चुनाव आयोग इसका संज्ञान ले सकता है.
लेकिन जिस तरह इस देश के बहुसंख्य हिंदू समाज के अधिकतर लोग संय्यम और सद्भावना को तरजीह देते हैं उससे यह लगता है कि तोगड़िया-गडकरी-गिरिराज को मुंहकी खानी पड़ेगी और इससे भाजपा को नफा होने के बजाये काफी घाटा होगा.