उच्चतम न्यायालय ने आज अपने एक अहम फैसले में उम्मीदवार या उसके समर्थकों के धर्म, समुदाय, जाति और भाषा के आधार पर वोट मांगने को गैर कानूनी करार दिया। न्यायालय ने जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) की व्याख्या करते हुए यह अहम निर्णय सुनाया। सात न्यायाधीशों की पीठ ने चार तीन के बहुमत से यह फैसला दिया।
मुख्य न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर की अगुवाई वाली पीठ ने इस मामले में सुनवाई के दौरान जनप्रतिनिधित्व कानून के दायरे को व्यापक करते हुए कहा कि हम यह जानना चाहते हैं कि धर्म के नाम पर वोट मांगने के लिये अपील करने के मामले में किस धर्म की बात है। फैसले में कहा गया कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है और जनप्रतिनिधियों को भी अपने काम-काज धर्मनिरपेक्ष आधार पर ही करने चाहिये । न्यायालय ने बहुमत के आधार पर दिये इस निर्णय में कहा कि धर्म के आधार पर वोट देने की कोई भी अपील चुनावी कानूनों के अंतर्गत भ्रष्ट आचारण के सामान है। न्यायालय ने कहा कि भगवान और मनुष्य के बीच का रिश्ता व्यक्तिगत मामला है। कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ विशेष व्यवहार नहीं कर सकती और धर्म विशेष के साथ स्वयं को नहीं जोड़ सकती ।
फैसले के पक्ष में न्यायाधीश ठाकुर के अलावा न्यायमूर्ति एम.बी. लोकुर, न्यायमूर्ति एल. एन. राव और एस.ए. बोबडे ने विचार दिया जबकि अल्पमत में न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, न्यायमूर्ति ए.के. गोयल और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने विचार दिया । न्यायालय ने हिन्दुत्व मामले में दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है। न्यायालय ने साफ किया है कि अगर कोई उम्मीदवार ऐसा करता है तो यह जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत भ्रष्ट आचरण माना जायेगा और यह कानून की धारा 123(3) के दायरे में होगा।