बिहार प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक चल रही है. लोकसभा चुनाव परिणाम से पार्टी सकारात्मक ऊर्जा से भरी है, विधानसभा चुनाव आने को है, जीत की आकांक्षा भी है.
पर संभावना क्या है?
बीरेंद्र यादव, बिहार ब्यूरो चीफ
शनिवार व रविवार को हो रही बैठक में आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति तय की जा रही है । पार्टी ने चुनाव के लिए 175 प्लवस का लक्ष्यी रखा है ।
लेकिन सवाल यह है कि इस लक्ष्यह की प्राप्ति के लिए वोटों का सामाजिक समीकरण भाजपा के पक्ष में है? पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा नेता नरेंद्र मोदी की नकारात्महक छवि और हिंदुत्वि की ऐसी हवा चली कि सभी समीकरण ध्व स्त? हो गए। करीब तीस साल बाद किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिला । उसी माहौल को आगे बढ़ाते हुए भाजपा बिहार में अपनी जीत दुहराना चाहती है । यह जीत की आकांक्षा का विस्तासर है । लेकिन सवाल यह है कि जिस हिन्दुात्व के रथ पर सवार होकर नरेंद्र मोदी हस्तीानापुर के सिंहासन पर पहुंचे हैं, क्या उसकी पुनरावृत्ति संभव है ?
इसकी पुनरावृत्ति की सबसे बड़ी बाधा है क्षेत्रीय नेतृत्व का अभाव। अभी भाजपा के पास कोई मजबूत नेतृत्वन नहीं है। सुशील मोदी या नंद किशोर यादव के पास वोट बटोरने का रणनीतिक कौशल नहीं है। इनके अलावा भी जिस नाम पर पार्टी नेतृत्वो सहमत होगा, उसकी भी स्वीीकार्यता बहुत अधिक नहीं होगी। इस लिए जीत आकांक्षा पूरी करने के लिए ऐसे नेता का होना लाजिमी है जिसके नेतृत्व का राज्य पर प्रभाव हो सके.
लेकिन भाजपा की सबसे बड़ी ताकत आरएसएस, हिन्दुलत्व और पूंजीपति रहे हैं । नरेंद्र मोदी के नाम पर तीनों एक साथ थे । लेकिन बिहार विधान सभा चुनाव के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है । इसलिए यह सवाल भी वाजिब है कि क्याप बिहार में हिन्दुीत्व की हांड़ी भी फिर चढ़ेगी
, यह तो समय बताएगा, लेकिन भाजपा इस हांड़ी को लीप-पोत कर तैयार कर रही है। आखिर राजनीति संभावनाओं का ही खेल है।
आगामी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा इस हाड़ी की क्षमता का आंकलन करने का भी प्रयास करेगी। 21 अगस्त को प्रस्तावित इस उप चुनाव में 10 सीटों पर मतदान होगा. यहसंख्या रुझान समझने के लिए काफी है.
फोटो कर्टसी व्यू पटना ब्लाग