मैथिली और हिंदी के यशस्वी कवि आरसी प्रसाद सिंह, हिंदी काव्य–संसार में,बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में, दिनकर,प्रभात, वियोगी,नेपा
यह बातें आज यहाँ कवि की १०८वीं जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और काव्य–संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, मैथिली में,जो उनकी मातरी–भाषा थी, प्रकाशित उनके तीन काव्य–संग्रह– ‘माटिक दीप‘, ‘पूजाक फूल‘ व ‘सूर्यमुखी‘तथा हिंदी में प्रकाशित‘काग़ज़ की नाव‘और ‘अनमोल वचन‘ काव्य–सागर की अनमोल मोतियाँ हैं। ‘सूर्यमुखी‘के लिए उन्हें १९४८ में, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जीवन का संत्रास झेल रहे आज के समाज में आरसी फिर से प्रासंगिक हो गए हैं ।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि, आरसी बाबू अत्यंत विनम्र स्वभाव के सरल व्यक्ति थे। उनकी रचनाओं में वही सरलता और जीवंतता थी। वे अपने समय के महत्त्वपूर्ण कवियों में अग्र–पांक्तेय थे।
इस अवसर पर आयोजित कवि–गोष्ठी का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी–वंदना से किया। के साथ आरसी बाबू की प्रसिद्ध रचना ‘जीवन का झरना‘ का सस्वर पाठ कर किया। वरिष्ठ कवि–शायर मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘ने जीवन की आकांक्षा को शब्द दिए कि, “दिल में जिनके कुछ अरमान जो मचल जाएँगे/ कर वो गुज़रेंगे कुछ, संकट भी जो टाल जाएँगे/ राह कितनी हो कठिन, हौसला बुलंद मगर/ वो जो तैयार हैं जाने को, निकल जाएँगे“।
डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, “ज़ुल्फ़ें खुली थी आपकी बाहों का साथ था/ ख़ुद चाँद था फलक का उजालों का साथ था“। कवि सुनील कुमार दूबे ने आज के बेटों का चित्र इन पंक्तियों में खींचा कि, “माँ मेरे माँ का यह चोर,मुझे सदा से सालता है/ ऐसा लगता है कि, समाज के भय से हीं बेटा अक्सर माँ के मुँह में रोटी डालता है“।
कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘ने इन पंक्तियों से नेताओं पर व्यंग्य के वाण छोड़े कि, “हम्माम से नंगे–नंगे निकल–निकल नेता/ ढूँढते वोट के फटे–फटे पायजामे/जाली जन–तंत्र,ख़ाली–ख़ाली डुगडुगी / कुर्सी की टाँगें तोड़–तोड़ सियासत के हम्माम“। शायर आरपी घायल ने अपने ख़याल का इज़हार इस तरह से किया कि,ग़म मिला तो मैं उसी से दिल को बहलाता रहा/ एक चादर की तरह उस ग़म को तहियाता रहा “। कवयित्री आराधना प्रसाद ने कहा कि, “मेरे गीतों में प्यार की ख़ुशबू/ बाबरे मन की बाबरी ख़ुशबू/ ले के जज़्बात अपने होठों पे/रह गई चुप सी बोलती ख़ुशबू“।
डा मधु वर्मा ने अपनी कविता में आरसी बाबू को ऐसे नमन किया कि, “युग पुरुष! कौन कहता है, तुम मौन हो गाए? वसुधा के कण–कण में तेरी जीवंत मुस्कान है“। कवि शुभ चंद्र सिन्हा का कहना था कि, “कभी–कभी बेवजह भी खिड़की पर मुस्कुराया करो/ हर बार ज़रूरी नही ज़ख़्मी दिल भी बयान करो“।
कवि बच्चा ठाकुर ने कहा कि, “महँगा सचमुच हीं पड़ता बहुत बड़ा हो जाना/चढ़कर उन्नति शिखर–शिखर,पर नज़रों में गिर जाना“। ओज के कवि आचार्य आनंद किशोर शास्त्री ने ‘हिन्दी‘ के सम्मान में ये पंक्तियां पढ़ी कि, “हिन्दी में जन गण राष्ट्र–गान,हिन्दी में अमर तिरंगा है/ हिंदी में भारत माता है, हिन्दी में पावन गंगा है“।
योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने कवि को नमन करते हुए कहा कि, “जीवन की गीति रचना की, बहाई जिसने निर्झर धारा/ मन की कविता निकली जैसी रस धारा“।
कवि डा विजय प्रकाश, डा मेहता नगेंद्र सिंह, राज कुमार प्रेमी, जय प्रकाश पुजारी, कवि घनश्याम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय, प्राची झा, डा आर प्रकाश,मोईंन गिरिडिहवी,कुमारी मेनका, प्रभात धवन, पंकज प्रियम,रमेश मिश्र, कृष्ण रंजन सिंह, अश्विनी कुमार, अजय कुमार सिंह, रवींद्र कुमार सिंह आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।
मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया।