भौतिक चिकित्सा में लगातार हो रहे तकनीकी विकास से, पोलियो अथवा किसी भी कारण से, लकवा-ग्रस्त हुए मरीजों का उपचार आसान हुआ है। इसके पाठ्यक्रमों में गुणात्मक परिवर्तन हुए हैं और अब पहले की अपेक्षा नये फ़िजियोथेरापिस्ट, तकनीकी रुप से अधिक सक्षम सिद्ध हो रहे हैं.
थेरापी की तकनीक भी परिस्कृत हुई है तथा नयी किताबों ने भी विशेषज्ञों का मार्ग-दर्शन किया है। भौतिक-चिकित्सा में पुस्तकों का भी अभाव रहा है, जिसे अब पूरा किया जा रहा है। अंग्रेजी के साथ हिन्दी में भी पुस्तकें आने लगी हैं, जो अच्छी और ज़रूरी बात है।
यह बातें सोमवार को पटना में, युवा फ़िजियोथेरापिस्ट डा ब्रोतोमय चटर्जी द्वारा अंग्रेजी तथा हिन्दी भाषाओं में रचित पुस्तक ‘एक्सरसाइज थेरापी’ तथा ‘भौतिक-चिक्त्सा’ पर, बेउर स्थित संस्थान इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एजुकेशन ऐंड रिसर्च में आयोजित एक परिचर्चा में, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, पुस्तक के लेखक ने सरल भाषा में एक्सरसाइज थेरापी की बारिकियों को बहुत कुशलता से समझाया है।
इसलिये यह पुस्तक फ़िजियोथेरापी के विद्यार्थियों के साथ-साथ आम पाठकों के लिये भी उपयोगी सिद्ध होगी। उन्होंने डा चटर्जी को इस मूल्यवान प्रयास के लिये बधाई और शुभकामनाएं दी.
पुस्तक के लेखक के अतिरिक्त पुनर्वास-विशेषज्ञ टी चटर्जी, संस्थान के पुनर्वास विभाग के अध्यक्ष डा अनुप कुमार गुप्ता, प्रो सुशील कुमार झा, आभास कुमार तथा डा तपसी ढेंक ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर प्रो गीता यादव, डा राजेश कुमार झा, डा संजीत्ग कुमार, डा पी कुमार, डा आलोक कुमार समेत बड़ी संख्या में संस्थान के शिक्षक एवं छात्रगण उपस्थित थे