गणतंत्र दीवस पर जब हम राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे  होते हैं तो यह जानना अनिवार्य है कि अगर मानक के अनुरूप ध्वज न हो तो हम अपराध कर रहे होते हैं. आखिर कैसा हो ध्वज  पढ़िये वरिष्ठ पत्रकार अनंत का शोधपर लेख.

The Indian tricolour national flag  is seen flying above the Mantralaya state secretariat building in Mumbai on September 27, 2012. AFP PHOTO/ INDRANIL MUKHERJEE        (Photo credit should read INDRANIL MUKHERJEE/AFP/GettyImages)
क्या हम राष्ट्रीय ध्वज को मानक के अनुरूप बनाते हैं ?

कवियत्री भावना 10 वर्षीया बेटी आदया के साथ राष्ट्रध्वज की खरीदने बाजार गई। तिरंगा झंडा से फुटपाथ की दुकानें सजी थी। झंडे के उपरी पट्टी को दिखाते हुए आदया ने सवाल किया:- ‘‘ माॅ यह सेफ्रान (केशरिया) है या आॅरेंज (नारंगी)। यह सवाल सुनते ही भावना चैंक पड़ीं। भावना कहती हैं कि ‘‘ राष्ट्रध्वज में निहित रंगों का विशेष अर्थ और महत्व है। इसलिए सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हर हिन्दुस्तानी को राष्ट्रध्वज बनाने का अधिकार मिलना चाहिए ?

पटना वीमेंस कालेज के राजनीतिशास्त्र विभाग की वरीय व्याख्याता शेफाली राय कहती हैं कि केशरिया श्वेत व हरे रंग के साथ-साथ अशोक चक्र की व्यापक व्याख्या संविधान में की गयी है। जो कि संघर्ष करते हुये आसमान की बुलंदी पर पहूंचने के बाद भी मिट्टी से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है। बाजार में धड़ल्ले से बिक रहे झंडों को देख मन कचोटता है। बाजार में उपलब्ध अधिकतर झंडे का रूप, रंग, व आकार कई सवालों को जन्म देता है।

‘हम मदरसों में राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं भगवाधारी न संसद को मानते हैं न ध्वज को’

 

अशोकच्रक

कई झंडों पर अंकित अशोक चक्र में तिलियों की संख्या(24) भी सही नहीं होती है। झंडा निर्माताओं के पास मानक से संबंधित दस्तावेज होना चाहिये। मानक के अनुरूप राष्ट्रध्वज का निर्माण ही देशहित में है।

भारतीय मानक ब्यूरो ने 1951 में राष्ट्रध्वज को पंजीयन संख्या आई0 एस0-1 के तहत पंजीकृत कर मानक तैयार किया। 1968 में ब्यूरो ने झंडा मानक के नियमों को संशोधित किया। 1968 में जारी दस्तावेज में कहा गया है कि झंडे की पट्टी की चैड़ाई दोनो तरफ बराबर होनी चाहिए। 24 स्पोक वाला ब्लू रंग का अशोक चक्र श्वेत पट्टी के बीचोबीच होगा। 1968 में ही ब्यूरो ने सिल्क और ऊल खादी के कपड़े से झंडा निर्माण करने का लाइसेंस निर्गत करने का निर्णय लिया। लेकिन अभी तक देश के किसी भी खादीग्रामोद्योग को सिल्क और ऊल खादी के कपड़े से राष्ट्रध्वज बनाने का लाइसेंस ब्यूरों ने निर्गत नहीं किया है।

 

फिर भी सिल्क कपड़े से निर्मित झंडे की बिक्री राजधानी पटना समेत देश के तमाम शहरों में धड़ल्ले से हो रही है। भारतीय मानक ब्यूरो ने देश के तीन खादीग्रामोद्योग को सिर्फ सूती खादी से राष्ट्रध्वज निर्माण करने का लाइसेंस निर्गत किया है। कर्नाटका खादी ग्रामोद्योग समयुक्ता संघ (फेडेरेशन) हुबली , खादी डायर्स एण्ड प्रिन्टर्स कोरग्राम बोरीवली महाराष्ट्रा और के0डी0पी0 इन्टरप्राईजेज थाने महाराष्ट्रा को लाइसेंस प्राप्त है।

के0 डी0 पी0 इन्टरप्राईजेज थाने को महज 1800 मीलीमीटर लंबा और 1200 मीलीमीटर चैड़ा आकार वाले झंडा निर्माण करने का लाईसेंस प्राप्त है। इसके अलावे अन्य खादीग्रामोद्योग को 150 मिलीमीटर से 6300 मीलीमीटर लंबाई और 100 मिलीमीटर से लेकर 4200 मिलीमीटर चैड़ाई वाले झंडे का निर्माण करने का लाइसेंस प्राप्त है।

 

झंडे का आकार

आकर के लिहाज से 9 किस्मों का तिरंगा झंडा बनाने का प्रावधान है। भारतीय मानक ब्यूरों के बिहार प्रमुख व वैज्ञानिक एफ0 एस0 एन0 चटर्जी कहते हैं कि बिहार के किसी खादी ग्रामोद्योग ने राष्ट्रध्वज निर्माण के लिए लाईसेंस प्राप्त करने हेतु आवेदन नहीं दिया है।

 

भारतीय मानक ब्यूरो के दस्तावेज में खादी के कपड़े का निर्माण से लेकर झंडे का रंग ,रूप और स्वरूप के बारे में काफी बारीक ढंग से चर्चा की गई है। हाथ के कते और हाथ से बुने कपड़े को प्रमाणिक खादी माना जाता है। दस्तावेजों में दर्ज नियम के अनुसार 1 मीटर लंबाई और 1 मीटर चैड़ाई वाले सूती खादी के कपड़े का वजन 185 ग्राम से 225 ग्राम के बीच होना चाहिये। 1 डेसी मीटर की लंबाई और चैड़ाई में धागों की संख्या 165 से 175 के बीच होना चाहिये। झंडे की सिलाई के लिए आईएस0-1720 वेराईटी नंबर 15 का धागा ही उपयोग में लाना चाहिए।

भारत मानक ब्यूरो

भारतीय मानक ब्यूरो के बिहार प्रमुख व वैज्ञानिक एफ0 एस0 एन0 चटर्जी कहते है कि राष्ट्रध्वज में प्रयुक्त होने वाले रंगों में भारतीय केशरिया, भारतीय हरा और श्वेत का भी मापदंड है। रंगों के मापदंड को स्पेक्ट्रोफोटोमीटर के द्वारा जांच की जाती है। चीफ इंस्पेक्ट्रोटेट आॅफ टेक्सटाईल एण्ड क्लोथिंग कानपुर के पास भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार निर्मित राष्ट्रघ्वज है।

विवाद का निपटारा

विवाद पैदा होने पर इस राष्ट्रध्वज से मिलान किया जाता है। राजधानी पटना समेत बिहार के अन्य हिस्सों में राष्ट्रध्वज निर्माण का कार्य वर्षो से होता आ रहा है। 26 जनवरी और 15 अगस्त के मौके पर खादी विक्रेता और फुटपाथी दुकानदार खुलेआम बेचते हैं। स्कूली बच्चे एवं अन्य लोग इन्हीं झंडों को खरीदते है। दुकान का दरवाजा बदलते ही झंडे का रूप रंग और स्वरूप बदल जाता है।

बेतरतीब झंडा बनाने पर तीन साल की सजा

बेतरतीब रंग रूप व आकार वाले झंडे की हो रहे निर्माण व बिक्री के सवाल पर पटना के जिलाधिकारी ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहते हैं कि इसकी जांच कर अनुशासनिक कारवाई की जाएगी और जनता को जागरूक बनाने का प्रयास किया जायेगा। पटना हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रभाकर सिंह कहते हैं कि राष्ट्रध्वज देशप्रेम के भावनाओं और आकांक्षाओं का प्रतीक है। कानून के मुताबिक ऐसे लोगों को तीन वर्ष तक की सजा हो सकती है।

भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा संचालित खादी दुकान में आई एस आई ट्रेड मार्का युक्त राष्ट्रध्वज की बिक्री होती है। आई0एस0आई मार्का युक्त राष्ट्रध्वज ही प्रमाणिक झंडा है। इसकी कीमत फुटपाथ एवं अन्य खादी भंडार में बिकने वाली राष्ट्रध्वज की अपेक्षा कई गुणा अधिक होती है। सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ता महेन्द्र सुमन कहते हैं कि जागरूकता की कमी से कई लोग आई0एस0आई0 मार्का युक्त झंडा नहीं खरीद पाते हैं। वहीं कई लोग आर्थिक कमजोरी के कारण भी प्रमाणिक झंडे का इस्तेमाल करने से वंचित रह जाते हैं।

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वह हर हिन्दुस्तानी के हाथों तक प्रमाणिक झंडा पहूंचाने का प्रयास करे। गांधी संग्रहालय पटना के मंत्री व गांधीवादी विचारक रजी अहमद कहते हैं कि:- तिरंगा झंडा आजाद हिंदुस्तान का प्रतीक है। प्रमाणिक हिंदुस्तानी हम तभी होंगे जब हमारे हाथ में संविधान के मापदंड के अनुरूप राष्ट्रध्वज होगा। यह मुद्दा राष्ट्रीयता से जुड़ा है। सड़क से संसद तक बहस होनी चाहिए। क्या हर हिन्दुस्तानी को तिरंगा झंडा बनाने का अधिकार मिलना चाहिये ? सरकार को देशवासियों के लिए सस्ते दर पर प्रमाणिक राष्ट्रध्वज उपलब्ध कराना ही आजादी के सपनों को सच साबित करेगा।

अनंत पटना स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्हें हाल ही में अंतराष्ट्रीय हिंदी निबंध प्रतियोगिता में सम्मानित किया गया है. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है

By Editor


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