भूमिहार की बैसाखी पर 10 वर्षों पर राज करने वाले नीतीश कुमार ‘यादव लहर’ पर सवार होकर नयी उड़ान भर रहे हैं। विधान सभा चुनाव में दो-तिहाई बहुमत से सत्ता में लौट रहे नीतीश कुमार को इस बार नये सामाजिक समीकरणों के लिए नया संतुलन बैठाना होगा। ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद भूमिहारों को पटना की सड़कों पर ‘ताडंव’ करने की छूट देने वाले नीतीश कुमार की सबसे बड़ी चुनौती नये सामाजिक समूहों का एकबद्ध बनाए रखना होगा।
वीरेंद्र यादव
यह चुनौती बाद की है। पहले उनकी संभावनाओं पर चर्चा करना जरूरी है। यह निविर्वाद है कि नीतीश की ‘छप्पड़ फाड़’ जीत का पूरा श्रेय लालू यादव और उनके साथ यादव व मुसलमानों की गोलबंदी को जाता है। इसके साथ कुर्मी वोटों ने भी नीतीश पर विश्वास बनाये रखा, जबकि अतिपिछड़ा तबका भी नीतीश को माथे पर बैठाए रखा। जहां तक नीतीश कुमार की संभावनाओं का सवाल है। काम करने के लिए उनके पास व्यापक समर्थन है और लालू यादव का पूर्ण सहयोग भी।
लालू पुत्रों को अभी नहीं मिलेगी जिम्मेवारी
राजद सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, तेज प्रताप व तेजस्वी को अभी कोई बड़ी जिम्मेवारी नहीं दी जाएगी। आवश्यकता हुई तो मीसा भारती को सरकार में शामिल किया जा सकता है। लालू यादव सरकार पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अभी ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं, लेकिन नीतीश को एकदम निरंकुश छोड़ने के पक्ष में भी नहीं हैं। अभी एक-दो दिनों में परिदृश्य साफ हो सकता है। 13 से 15 नवंबर के बीच कभी भी नयी सरकार को शपथ दिलायी जा सकती है।
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