27 अक्टूबर को पटना धमाके में जिस संदिग्ध को पुलिस ने पकड़ा वह चीख-चीख कर अपना नाम पंकज बता रहा था. लेकिन कुछ ही घंटों मे जो नाम पुलिस ने बताया वह इम्तेयाज था.
सवाल यह है कि आखिर पंकज इम्तेयाज कैसे बन गय? या फिर अगर वह इम्तेयाज था तो उसे वहां मौजूद भाजपा के स्थानीय नेताओं ने (पंकज को) भाजपा का कार्यकर्ता क्यों बताया? आप यूट्यूब के नीचे के इस लिंक में देख सकते हैं कि यह युवक खुद को पंकज कुमार बता रहा है.
हम यहां बियॉंडहेडलाइंस की पूरी रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं ताकि पाठक समझ सकें और हकीकत के कुछ छुपे पहलू सामने आ सकें-
हमेशा सुस्त रहने वाली पटना पुलिस ने इस बार ऐसी चुस्ती-फुर्ती दिखाई कि ऑन-स्पॉट ‘आतंकी’ को दबोच लिया गया. यह अलग बात है कि वो चिल्लाता रहा कि मैं बेगुनाह हूं और मेरा नाम पंकज है. और सिर्फ वही नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी हंगामा किया कि वो बेगुनाह है और भाजपा का कार्यकर्ता है. लेकिन पुलिस ने इनकी एक न सुनी.
(आप न्यूज़-24 का वीडियो क्लिप यहां देख सकते हैं-http://www.youtube.com/watch?v=gHnO54gAOIQ दूसरे चैनलों पर भी इस फूटेज को दिखाया गया था, जिसमें स्पष्ट रूप से पकड़े गए संदिग्ध के गले में भाजपा का झंडा भी आसानी के साथ देखा जा सकता है. और एक और खास बात कि सारे अखबारों के कैमरों इस संदिग्ध के चेहरे पर चमकते रहे, लेकिन किसी ने उसकी तस्वीर अपने अखबार में नहीं छापी है.
शायद यह मसले का हल ही था कि जो अपने आपको पंकज बताता रहा, वो अब ऐनुल उर्फ इम्तियाज़ बन चुका था. जिस संदिग्ध को भाजपा कार्यकर्ता अपना कार्यकर्ता बताते रहे थे, उसे तुरंत आईएम का मास्टरमाइंड बना दिया गया. मोदी का समर्थक एक पल में भटकल का साथी बन चुका था.
एक अंग्रेज़ी वेबसाइट (firstpost.com) की गलती को देखकर अंदाज़ा लगाईए कि इतना ज़िम्मेदार वेबसाइट ऐसी गलती कैसे कर सकता है? इस वेबसाइट ने 6.35 में यह खबर प्रकाशित की कि बिहार डीजीपी के मुताबिक तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनके नाम रामनारायण सिंह, विकास सिंह और मुन्ना सिंह है. खबर तेज़ी के साथ लोगों तक पहुंचती रही, लेकिन बाद में इसके नीचे प्रकाशित कर दिया गया कि ‘Correction: We regret putting up an earlier update where we mentioned the three deceased as suspects because of an erroneous report.’
शायद ऐसा पहली बार हुआ कि सुरक्षा एजेंसियों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. ज़्यादा छापे नहीं मारने पड़े. दो-तीन छापों में ही पूरा काम निकल आया. नहीं तो अब तक को यही होता आया है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां आनन फानन में छापा मारती है. संदेहास्पद लोग पकड़े जाते हैं. उनके पास ये चीजें ज़रूर बरामद होती हैं- उर्दू का एक अखबार, पाकिस्तान का झंडा, इंडियन मुजाहिदीन या सिमी का साहित्य, पाकिस्तान मेड असलहा, विदेशी करेंसी… (मानो आतंक के आका आतंकियों को हर ब्लास्ट से पहले एक विशेष प्रकार की किट से लैस करके भेजते हैं. ब्लास्ट की जगह अलग हो सकती है. ब्लास्ट का समय अलग हो सकता है, मगर ये किट जिसे सुरक्षा एजेंसियां बरामद करती हैं, हमेशा एक सी होती है. कभी नहीं बदलती.), लेकिन इस बार इन सबकी जगह संदिग्ध के ठिकाने से डेटोनेटर, सीडी, तस्वीरें, तार, कांच की गोलियां, पेन ड्राइव, हथौड़ी, केरोसिन तेल, विस्फोटक में इस्तेमाल करने वाले फ्यूज़ ज़रूर मिले हैं. और एक और अहम चीज़ जो प्राप्त हुआ है, वो है उर्दू साहित्य…
ऐसा पहली बार हुआ कि आतंकी अपने जेब में अपने साथियों का नम्बर अपने साथ लेकर आया था. ताकि हम अगर डूबे तो साथ में अपने साथियों को भी ले डूबेंगे सनम… नहीं तो हमेशा से यही आया है कि ब्लास्ट कोई भी हो, कहीं भी हो, कैसा भी हो, खुफिया एजेंसियों के सूत्रों से मास्टर माइंड का नाम आधे घंटे के भीतर ही फ्लैश होना शुरु हो जाता था और वो इन्हीं में से कोई एक होता था. रियाज भटकल. इकबाल भटकल. यासीन भटकल… अहमद सिद्धी बप्पा उर्फ शाहरूख उर्फ यासीन अहमद. इलियास कश्मीरी. हाफिज सइद. लखवी… (मानो ये मास्टर माइंड कारनामे को अंजाम देते ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को फोन कर रिपोर्ट करते हों कि सरकार काम हो गया, अब आप नाम आगे बढ़ा सकते हैं.), लेकिन भटकल तो इस बार जेल की हवा खा रहा है, तो उसके दोस्त काम को संभाल रहे हैं.
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