वरिष्ठ पत्रकार असित नाथ तिवारी पेरिस हमले के बहाने साम्राज्यवादियों के उस दोमुहे चरित्र की बखिया उधेड़ रहे हैं जो पेरिस के दर्द को दर्द समझते हैं पर इराक की बस्तियों में लाशे बिछाने को जायज ठहराते हैं.
भारत में आईएसआईएस नहीं है लेकिन भारत में इस से सहानुभूति रखने वाले जरुर हैं। घाटी में आईएसआईएस के झंडे लहराए जा रहे हैं और देशभर में इस के समर्थन में लोग खड़े हो रहे हैं। कौन हैं ये लोग? ये आतंकी हैं क्या?
ये आतंकवाद का समर्थक हैॆं क्या? ये सवाल बेहद महत्वपूर्ण हैं। मेरा मानना है कि इनमें से ज्यादातर लोग न तो आतंकी हैं और ना ही अतंकवाद का समर्थक।
ये भी क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया वाले फॉर्मूले का समर्थक हैं, मजलूमों के पक्ष में खड़े होने वाले लोग हैं।
साम्राज्यवादी ताकतें दुनिया के कई देशों में कहर बरपाती रही हैं, आज भी कहर बरपा हो रहे हैं। खाड़ी देशों में तेल के कुओं पर कब्जे के लिए कई बहानों से वहां के लोगों पर कहर बरपा किए गए और दुनिया खामोश तमाशा देखती रही। तेल के कुओं पर कब्जे के लिए धर्म का सहारा लिया गया, इस कत्लेआम को धर्म-मजहब से जोड़ा गया। यहूदी मारे गए, मुसलमान मारे गए, कई धर्म-मजहब के बेकसूरों की बस्तियां लाशों से पट गईं। इनकी प्रतिक्रिया तो सामने आएगी।
सुन्नी मुसलमानों को शिया मुसलमानों से लड़ाने से अमेरिका और उसके सहयोगी साम्राज्यावादियों को फायदा ही फायदा है। इराक और अफगानिस्तान में शियाओं को भड़का कर साम्राज्यवादी शक्तियां जब सुन्नियों का नरसंहार कर रही थीं पूरी दुनिया खामोश थी। सारे मानवतावादी लिहाफ ओढ़कर घी पी रहे थे। आज सुन्नियों को लग रहा है कि उनके लिए भी कोई लड़ने वाला है, उनकी हिफाजत के लिए भी कोई अपनी जान गांवा रहा है, उनके कत्लेआम का भी कोई बदला ले रहा है और इसी भाव ने भारत में भी आईएसआईएस के लिए सहानुभूति की एक मामूली हिलोर उठा दी है।
यकीन मानिए सच से जितना भागिएगा समस्या उतनी विकराल होगी। फुनगी के पत्ते तोड़ने से दरख्त नहीं सूखा करते। आतंक के जड़ों पर हमला करना होगा, फुनगी के पत्तों पर तलवार भांजने वाले मानवता का दुश्मन हैं। ये वही लोग हैं तो आईएसआईएस जैसे संगठनों को पैदा करते हैं, पालते-पोसते हैं। वक्त आतंक के जड़ों पर कुल्हाड़ी मारने का है। पेट्रोलियम से दुनिया चल रही है, आगे भी चलेगी लेकिन दुनिया बचेगी तब ही।
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