चुनाव में खड़े उम्मीदवारों को नकारने वाला बटन नोटा धीरे-धीरे ताकतवर बनता जा रहा है। यह अब प्रत्यक्ष रूप से हार-जीत को प्रभावित करने लगा है। इसकी संख्या भी अब हजारों में पहुंच रही है। हालांकि यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए अशुभ नहीं कही जा सकती है, पर इतना तय है कि अब मतदाताओं को लगने लगा है कि चुनाव में खड़े उम्मीदवार नकारे भी हैं। इन्हीं दस सीटों के लिए हुए उपचुनाव में करीब 24 हजार मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाकर बताया कि मैदान में खड़े उम्मीदवार उनके लिए नकारे हैं।
परिणाम को प्रभावित करने लगा है नोटा
सबसे रोचक मामला तो बांका विधान सभा क्षेत्र में आया। यहां जीत का अंतर मात्र 711 वोटों का रहा, जबकि यहां 2550 वोटरों ने नोटा बटन दबाकर उम्मीदवारों को नकारा बताया। इसी तरह की स्थिति राजनगर में भी रही। यहां जीत का अंतर 3448 वोटों का है, जबकि 2778 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज्यादा मोहिउद्दीन नगर 3448 वोटरों ने नोटा दबाया, जबकि सबसे कम 1187 वोटरों ने भागलपुर में नोटा दबाया। इसके अलावा छपरा में 2467, मोहनिया में 1708, हाजीपुर में 2703, जाले में 2608, नरकटियागंज में 1500, परबत्ता में 3095 वोटरों ने नोटा दबाकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।
आंकड़े बताते हैं कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में नोटा का इस्तेमाल ज्यादा हुआ है। जैसे शहरी क्षेत्र भागलपुर में मात्र 1187 वोटरों ने नोटा का इस्तेमाल किया तो मोहिउद्दीनगर जैसे कस्बेनुमा शहर में सबसे से ज्यादा 3448 वोटरों ने नोटा का इस्तेमाल किया। चुनाव आयोग ने वोटरों के लिए नोटा का अधिकार देकर यह मौका दिया है कि वह अपने उम्मीदवारों को नकार भी सकता है और इसमें भी लोगों की रुचि बढ़ती जा रही है। अब इसका असर चुनाव परिणाम पर भी दिखने लगा है।