बिहर के वोटरों द्वारा जंगल राज के मुद्दे को नकार दिये जाने के बावजूद विपक्ष इसी मुद्दे पर चार महीने से अटका है जबकि किसानों, ग्रामीणों के वास्तविक मुद्दे पीछे रह गये हैं. आखिर भाजपा मूल मुद्दे क्यों समझ नहीं पा रही.
अनिता गौतम
बिहार में महागठबंधन की सरकारी बनी, तो ये उम्मीद की जा रही थी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद संकटमोचक की भूमिका अदा करेंगे। चूंकि लालू प्रसाद के दोनों बेटे तेजप्रताप और तेजस्वी यादव में भी जनता ने अपनी आस्था जतायी तो सबसे ज्यादा सीट लाने वाली पार्टी राजद के मंत्रियों में दोनों का नाम शुमार हो गया।
अब एक बहुमत से चुनी हुई सरकार बिहार में चल रही है तो जाहिर है कि विपक्ष के चुनावी मुद्दों और महागठबंधन पर लगाये गये तमाम आरोपों को जनता नकार चुकी है।
आरोपों में दम नहीं
फिर विपक्ष के सारे हथकंड़े जब बेमानी हो गये हैं तब भी उनके जंगल राज का पुराना राग अभी बाकी है। कभी सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करने का आरोप लालू प्रसाद पर लगा रहे है, तो कभी राज्य में होने वाली हत्याओं के आकड़े पेश कर जनता को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बिहार में भय और दहशत का माहौल कायम है। साथ ही बिहार में कानून औऱ व्यवस्था की स्थिति नब्बे के दशक से भी बदतर होने की बात विपक्ष लगातार बताने की कोशिश कर रहा है। विधान सभा के अंदर और बाहर विपक्ष सिर्फ एक ही राग अलाप रहा है। जबकि राजद के तमाम राजनेता इसे यह कह कर खारिज कर चुके हैं कि बिहार ही क्यूं दूसरे राज्य भी इस तरह की आपराधिक घटनाओं से अछूते नहीं है।
किसानों गरीबों के मुद्दे छूटे पीछे
बहरहाल कमजोर विपक्ष आज भी उसी विषय पर अटका हुआ है। कानून व्यवस्था की दुहाई देकर कभी लोजपा राष्ट्र पति शासन की मांग करती हैं तो कभी भाजपा के नेता ट्वीटर और सोशल साइट्स के माध्यम से बिहार की जनता के मूड को समझने का दावा करते हैं। कमजोर विपक्ष तो सभी को दिख रहा है पर इस तरह से मुद्दा विहीन विपक्ष की कल्पना कम से कम बिहार वासियों ने नहीं की है.
विपक्ष को चाहिए कि वह ठोस मुद्दे ले कर सामने आये. लोकतंत्र में मुद्दों की कमी नहीं है. जनता से जुड़े मुद्दे उठाने का साहस करना होगा विपक्ष को. सच पूछिए तो लालू नीतीश की सरकार जिन ग्रामीण और गरीबों के वोट से बनी है उनके मुद्दे काफी ज्वलंत और महत्वपूर्ण हैं. राज्य के किसान अपनी फसल की उचित कीमत, सिचाई की व्यवस्था, बिजली और नौकरशाही के भ्रष्टाचार से त्रस्त है.लेकिन यह अफसोस की बात है कि विपक्ष इन मुद्दों की गंभीरता को समझने की कोशिश नहीं करता.