“ राजनीतिक दलों ने भगत सिंह की तस्वीरें अपनाई है विचार नहीं, वर्तमान दौर में राजनीतिकरण के तहत भगत सिंह की पगड़ी का रंग कभी भगवा तो कभी पीला किया जा रहा है,पर उनके विचारों को नहीं अपनाया जा रहा है ” यह बात भगतसिंह के 109 वें जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम प्रोफ़ेसर चमनलाल ने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के विधि सभागार में की.
‘शहीद भगत सिंह की विचारधारा और उनकी प्रासंगिकता’ विषय पर जवाहरलाल विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर चमनलाल ने कहा कि आज लोग भगत सिंह को लेकर जुलूस निकाल रहे हैं दरअसल वो भगत सिंह का ही जुलूस निकाल रहे हैं क्योंकि उनलोगों को भगतसिंह के विचारों से डर लगता है. उनको सिर्फ उनके पगड़ी के रंग से मतलब है. उन्होंने यह दावा किया कि भगत सिंह ने अपने जीवन में कभी भी भगवा और पीली पगड़ी का प्रयोग नहीं किया,उन्होंने सफ़ेद और कभी-कभी काली पगड़ी पहनी,पर आज उनकी तस्वीरों का भगवाकरण किया जा रहा है.
भगतसिंह की जीवन और विचारों पर कई पुस्तकों के लेखक चमनलाल ने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के विधि सभागार में छात्रो से खचाखच भरे इस कार्यक्रम में उनके विचारों की प्रासंगकिता पर बोलते हुए कहा कि आज जिस तरह से देश में देश-समाज के हालात हैं,वंहा इनकी विचार मशाल का काम करेगी. समाज में बदलाव के लिए भगतसिंह के विचारों को अपनाने पर बल दिया. इन्होनें बताया कि भगतसिंह ने बम-पिस्तौल की राजनीति की जगह विचारों की राजनीती अपना लिया था, इनका मानना था कि लाखों-करोड़ों गरीबों किसानों-कामगारों की मुक्ति से ही आजादी सही मायनों में मिल सकेगी. भगतसिंह का मानना था कि “पिस्तौल और बम इंकलाब नहीं लाते, बल्कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है और यही चीज थी, जिसे हम प्रकट करना चाहते थे.”
चमनलाल ने बताया कि 1928 ई. के बाद भगतसिंह ने वंदेमातरम् और भारत माता की जय के जगह ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘साम्राज्यवाद का नाश हो’ नारे को बोलना शुरू किया था. इन्होनें उनके जीवन के पत्रकारिता पक्ष के साथ-साथ अन्य पह्लुयों को भी उजागर किया.