हिजरत मक्का से मदीना की यात्रा प्रत्येक मुसलमान का व्यक्तिगत पवित्र कर्तव्य है. लेकिन मक्का में खतरों के कारण इस्लाम के अनुयायियों के शांतिपूर्वक जीवन जीने एवं धार्मिक आचरण में बाधा आने लगी तो पैगंबर हजरत मोहम्मद साबह ने अपने साथियों को मदीना चले जाने को कहा था.
हिजरत मक्का से मदीना की यात्रा प्रत्येक मुसलमान का व्यक्तिगत पवित्र कर्तव्य है. लेकिन मक्का में खतरों के कारण इस्लाम के अनुयायियों के शांतिपूर्वक जीवन जीने एवं धार्मिक आचरण में बाधा आने लगी तो पैगंबर हजरत मोहम्मद साबह ने अपने साथियों को मदीना चले जाने को कहा था.
जानिये क्या है हिजरत
“वास्तव में जिन्होंने अल्लाह पर विश्वास किया और उसके लिए अपनी जान माल के निमित्त संघर्ष किया उन्हें और जिन्होंने आश्रय दिया और सहायता की वे आपस में एक दूसरे के मित्र बन गए. किंतु जिनको विश्वास तो था लेकिन वह वहां से नहीं गए उनका वहां कोई संरक्षक नहीं था जब तक कि वहां से नहीं चले जाते और यदि वे धर्म के लिए आपकी सहायता चाहते हैं तो आपको उनकी सहायता करनी चाहिए चाहे वह आपके बीच के ही हैं लेकिन आप के खिलाफ हो और जो भी समझते हों अल्लाह वह सब कुछ देख रहा है”.( सुरह अलअनफाल:72)
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इसके अलावा मदीना में नवनिर्मित उमा के विविध क्षमताओं वाले पुश्ता मानव संसाधन की सख्त जरूरत थी मदीना के शहर राज्य में शीघ्र ही एक ऐसे मजबूर संपन्न और सम्मानित समुदाय बनाने की अति आवश्यकता थी जो खुद अपनी तथा अपने बहुलवादी आदर्शों की रक्षा करने में समर्थ हो.
बाद में पैगंबर ने लोगों को उत्साहित करते हुए कहा कि वह कहीं भी रह कर अपने धार्मिक वैश्विक कर्तव्य को निभा सकते हैं और उन्होंने मदीना प्रवास को आवश्यक नहीं बताया.
पैगम्बर मोहम्मद साहब ने घोषणा की कि एक बार मक्का को पूरी तरह से छोड़ देने के बाद कोई हिजरत नहीं करेगा. अल्लाह सभी दिशाओं में है जिधर भी देखोगे उसी का रूप दिखाई देगा.( अलबुखारी- 2912)
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अल्लाह के लिए सब स्वीकार्य है. वह सब जानता है.( अलबकरा 115)
प्रजातांत्रिक देश भारत के नागरिक मुसलमान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 28 के मौलिक अधिकार के अनुसार अपने धर्म की शिक्षा तदनुरूप आचरण और प्रचार सुनिश्चित करना चाहते हैं वह हिजरत के लिए किसी प्रकार के बंधन में नहीं है.