पीएम मोदी कहते हैं कि उन्होंने भ्रष्टाचार को भारत से मिटा दिया है. लेकिन कल आपने पढ़ा भ्रष्टाचार की मोदीगाथा –पार्ट -1, अब पढ़िये पार्ट-2.
नवल शर्मा
मोदी जी और उनकी सरकार ईमानदार है या भ्रष्ट इसका विश्लेषण सापेक्ष नहीं बल्कि निरपेक्ष रूप में होना चाहिए . ऐसा इसलिए कि देश की जनता को आपने भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था देने का वायदा किया था , इसलिए आपकी तुलना कांग्रेस से नहीं की जा सकती बल्कि आपको आपकी ही कसौटी पर कसा जायेगा . सार्वजानिक जीवन में होने के कारण राजनीति और प्रशासन के अंतर्विरोधों का साक्षी होने के चलते मुझे ऐसा लगता है कि जिस तरह लेनिन के देहांत के बाद ‘वोदका’ की तरह भ्रष्टाचार सोवियत जीवन और प्रशासन का अभिन्न अंग बन गया था और किसानों तथा मजदूरों के हाथों में सत्ता की बात मजाक बनकर रह गयी थी , वही मजाक आज फिर से कहीं ज्यादा क्रूर तरीके से भारत में दोहराया जा रहा है.
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भ्रष्टाचार की मोदीगाथा –पार्ट -1
ऐसे मचाया उधम
तो चलिए मोदी जी को कसते हैं. राजनीतिक भ्रष्टाचार का सबसे आरंभिक और महत्वपूर्ण पहलू चुनावी भ्रष्टाचार होता है . आप इसे भ्रष्टाचार की गंगोत्री भी कह सकते हैं . यहीं से आगे की सारी लीलायें शुरू होती हैं . अब याद कीजिये पिछले लोकसभा चुनाव को . शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो इस बात पर असहमत हो कि मोदी की भाजपा ने चुनाव में पैसा खर्च करने में सबको मीलों पीछे छोड़ दिया . उसी अकूत पैसे के बल पर मोदी जी ने चुनावी रैली से लेकर मीडिया तक ऐसा उधम मचाया कि विपक्षी पार्टियाँ मुँह ताकते रह गयीं . भारत जैसे स्वप्नजीवियों के देश में मोदी जी ने कॉर्पोरेट पैसे से राजनीति की ऐसी बयार बहायी की बस ! पर यह पैसा आया कहाँ से ? एक छोटी सी बानगी पर्याप्त होगी . आज से साल भर पहले गौतम अदानी की गिनती भारत के तेइसवें नंबर के धनपशु के रूप में होती थी और आज वह तीसरे नंबर पर खड़े हैं .अदानी ग्रुप के शेयर राकेट की तरह भागे जा रहे हैं . कई सारे बैंकों ने अदानी को जिस काम के लिए क़र्ज़ देने से मन किया उसे मोदी जी ने एसबीआई से एक झटके में दिलवा दिया . अनगिनत उदाहरण हैं . कितना गिनाया जाए . मैं तो बस चुनावी खर्च और सरकार की कार्यनीति को को -रिलेट भर करना चाहता हूँ.
कोर्ट ने तड़ीपार किया था
आगे बढें . चुनाव जीतने के बाद मोदी जी ने देश को पारदर्शी व्यवस्था देने के लिए जो टीम बनायीं उससे बड़ी आशाएं थी . पर ये क्या . मंत्रिमंडल में दागियों और भ्रष्ट चेहरों की भरमार . आडवाणी और मुरली मनोहर जैसे पारदर्शी चेहरों को साइड कर पार्टी की कमान एक ऐसे व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित कर दी गयीं जिसे कभी हाई कोर्ट ने तड़ीपार कर दिया था . तो पूत के पाँव पालने में ही दिखाई देने शुरू हो गए . फिर भी लगा कि चलो भाई आगे सब ठीक हो जायेगा . पर समय बीतता गया और आशाएं टूटती गयीं . देश के किसान काल कवलित होने लगे , मजदुर श्रमेव जयंती की भेंट चढ़ने लगे . पर हाय रे गरीब का बेटा . वोडाफ़ोन का सत्ताईस सौ करोड़ का कर्ज माफ़ कर दिया इसलिए कि इससे देश में निवेश का माहौल बिगड़ जायेगा पर किसानों के लिए क़र्ज़ माफ़ करने की बात तो दूर , उनपर विकास के नाम पर जुल्मो – सितम की इन्तेहाँ होने लगी. दामाद जी को कोसनेवाले प्रधानमंत्री जी के मंत्री गडकरी जी का नौकर भी अरबपति बन जायेगा , ये तो हद हो गयी. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद मन मारकर कालेधन पर एसआईटी का गठन किया . छोडिये इन बातों को ,
मोदी की नवाबी जीवन शैली
असली मुद्दे पर आते हैं. किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति और उसकी जीवन शैली नीचे के लोगों और जनसामान्य के लिए अनुकरनीय होती है . गाँधी और शास्त्री के देश में जब ये नए नवेले प्रधानमंत्री जी राजनीतिक क्षितिज पर उभरे तो लगा कि चलो अब जमाना बदल गया है . अब दो धोती और दो कुरता पहनकर देश का प्रधानमंत्री नहीं रह सकता , इतना तो चलेगा . पर ये क्या . इस व्यक्ति की नवाबी जीवन शैली ने तो अवध के नवाबों को भी पीछे छोड़ दिया . दस लाख का सूट . बाप रे ! और ऊपर से ये आदमी भाषण पिला रहा है कि न खाऊंगा न खाने दूँगा .ये व्यक्ति गरीब का बेटा होने का दावा करता है पर न तो अपने किसी विशेषाधिकार का त्याग करने के लिए तैयार है और न ही सादगी का व्रत लेने के लिए . अगर अरविन्द केजरीवाल की जनता की नज़रों में इतनी जल्द ऐसी साख बनी तो इसका एक बड़ा कारण मेरे हिसाब से यह भी है की अरविन्द की पार्टी ने सादगी का व्रत लिया और अपने विशेषाधिकारों के त्याग की घोषणा की. कभी लोहिया ने भी प्रधानमंत्री के तामझाम पर होनेवाले फिजूलखर्च पर चिंता जताई थी . और स्वाभाविक भी है . सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति का फिजूलखर्च और भोगविलास पूरे समाज को भ्रष्ट बनाता है . अगर उसको हटाया नहीं गया तो उसके सहयोगियों में और नौकरशाहों में भोगवृति बढ़ेगी , इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं है . भ्रष्टाचार पर तभी कारगर चोट की जा सकती है जब शीर्ष राजनेता अपना चरित्र बदले . जारी है —
नवल शर्मा एक विनम्र राजनीतिक कार्यकर्ता के साथ साथ राजनीतिक चिंतक के रूप में जाने जाते हैं. जद यू के आक्रामक प्रवक्ता रहे नवल मौलिक और बेबाक टिप्पणियों के लिए मशहूर हैं. अकसर न्यूज चैनलों पर बहस करते हुए दिख जाते हैं. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है.