बिहार के सुपौल जिले के बेला गांव की दर्दनाक दास्तान मिन्नत रहमानी की जुबानी सुनिए जहां आग की तबाही ने पिछले हफ्ते आशियाने और सपने दोनों को बर्बाद कर दिया है. सब दिन की तरह 6 अप्रैल को भी मजूरनी अपनी सहेलियों के साथ लुक छिप कर अपने होने वाले राजा बाबू के बारे में बाते कर रही थी, मजूरनी की माँ भी जल्दी जल्दी खाना बना कर घर के बगल में थ्रेशर से गेहूं की तैय्यारी में व्यस्त थी क्योंकि बेटी के हाथ मेहन्दी लगने में महज दो हफ्ते बाकी थे, भाई कफील सुपौल गया था.दहेज़ के सामान और बरातियो के नाश्ते के लिए मिठाई वाले को बुक करना था. बेचारे बूढ़े पिता घर में बैठ यही दुआ कर रहे थे कि वह चंद दिन का मेहमान हैं. खुद बेटी के लिए कुछ कुछ नहीं कर पाया लेकिन बेटा कफील मदरसा में पढ़ाई ख़त्म करने के बाद 4 साल कमा कर अपनी बहन की शादी अपनी कमाई से ही कर रहा है. सपने भी खाक हुए
भाई कफील ने बहन होने वाले शौहर को मोटरसाइकिल गिफ्ट करने का वादा किया था. इसलिए 60,000 रूपये और जेवरात भी घर में ही रख दिए थे. शादी से माहज 3 दिन पहले वह मोटरसाइकिल खरीदना चाह रहे थे ताकि वह नयी दिखे.
तभी मोहल्ले में अचानक काफी शोर सुनाई दिया, लोगों ने देखा कि मोहल्ले के एक किनारे के घर में जबरदस्त आग लगी हुई थी. जब तक लोग कुछ समझ पाते तेज़ पछुवा हवा के झोकों ने कई घरो को अपने आगोश में ले लिया और अब तो लोगों को अपनी जान बचानी भी मुश्किल थी. एक साथ दस घर में आग लग गयी और आधे घंटे के अन्दर लोग मोहल्ला खाली कर दिया. वे लोग अपने आशियाने को अपनी आँखों से जलते हुए देखते रहे.
तभी रोती बिलखती मजूरनी और उसकी माँ अपने जले हुए आशियाने के राख में अपने जेवरात और 60 हजार रूपये ढूँढना शुरू करती हैं. लेकिन घर के बाजू में चापाकल भी जब जल कर राख होचुका था तो बाकी सामान की क्या हालत हुई होगी इसका अंदाजा लगा या जा सकता है.
मजूरनी का भाई भी दो घंटे के बाद अपने गाव पहुंचता हे और हालात देखकर बेहोश होजाता हे, मजूरनी की बोली खत्म हो जाती है, बेचारे पिता सदमे में नदी किनारे जाकर लेट जाते हैं, माँ का रो रो कर बुरा हाल है.
सुपौल सदर प्रखंड के इस बेला गांव पहुंचने के लिए दो नदियों को पार करना पडता हे. साथ ही वहां पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है इसलिए अग्निशामन दस्ता को यहाँ पहुचना मुश्किल था.
हम अपने साथियों को लेकरसुबह 5 बजे वह पंहुचे. मुझे तो ऐसा लगा के जैसे हर घर के ऊपर पेट्रोल की बारिश की गयी हो. लेकिन यह तो एक की लापरवाही से यह घटना हुई थी. 2008-9 के बाद मैंने दूसरी बार ऐसी तबाही देखी थी.
2008-9 की बाढ़ के दौरान भी इस क्षेत्र में ऐसी तबाही फैली थी.
लेकिन जब मै मजूरनी के घर गया तो अपने आप को भी नहीं रोक पाया और मुझे लगा शायद अब दुनिया रुक चुकी हे, मानो सबकुछ थम सा गया था. चूंकी मै इलाके में हमेशा लोगो की सेवा में रहने की कोशिश करता हूं इसलिए उस गाव के लोग भी मुझे जानते थे , तभी मजूरनी की माँ को किसी ने कहा की यही मिन्नत रहमानी हैं. जैसे ही मै उनके जले हुए आशियाने के पास गया वो इस क़दर मुझसे लिपट कर रोने लगी जैसे शायद मेरे बचपन में मुझसे किसी ने कुछ छीन लिया होगा और मै अपनी माँ के कंधे से लिपटकर कर फफक फफक कर रोया था.
मुझे आज भी मजूरनी की माँ की वो बातें जब याद आती हे की ” बेटा अब मजूरनी बिन ब्याहले रेह जेते”.
अगले दिन जब घर वापस आया तो अखबारों की सुर्खी मिली “आशियाने ही नहीं जले, दफ़न हुए कई अरमान ”
मिन्नत रहमानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है