पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी मीडिया में अपनी उपेक्षा और मीडिया के नीतीश-लालू प्रेम से खफा थे। उन्होंने इसका इजहार भी किया और एक मीडिया हाउस को सबक भी सिखाया।
वीरेंद्र यादव
पटना से प्रकाशित एक मीडिया हाउस का संबंध आमतौर सीएम नीतीश कुमार के साथ छतीस माना जाता रहा है। उसकी चर्चा भी होती रही है। सरकार मीडिया को नियंत्रित करने के लिए विज्ञापन रोकने या कम करने का अभियान भी चलाती रही है। यह परंपरा रही है। नीतीश की अनिच्छा के विरुद्ध मांझी ने एक मीडिया हाउस के विज्ञापन का भुगतान रोक दिया और विज्ञापन में कटौती का आदेश भी दे दिया। हालांकि नीतीश के दबाव में उन्होंने भुगतान आदेश जारी कर दिया, लेकिन विज्ञापन में कटौती जारी रही।
इससे परेशान प्रबंधन ने मांझी से मिलने का समय लिया। प्रबंधन की टीम सीएम हाउस पहुंची। संकल्प में मुलाकात हुई। मांझी अपने साथ कुछ अखबारों का पुलिंदा लेकर आए। उन्होंने टेबुल पर अखबार पटकते हुए कहा- लालू-नीतीश की खबर पेज एक पर छपेगी और जीतनराम मुसहर है तो अंदर के पेज पर खबर छपेगी। यही आपकी पॉलिसी है। मांझी के तेवर समझते प्रबंधन को देर नहीं लगी। थोड़ी देर में इस भरोसे के साथ बैठक खत्म हो गयी कि सीएम मांझी को पर्याप्त जगह जाएगी। यह बात अखबार के मालिक तक पहुंचायी गयी। मालिक ने भी कहा कि मांझी जी को पर्याप्त जगह दी जाए। संयोग से उसी दिन मांझी की मिलर हाइस्कूल में दलित रैली थी। दुर्भाग्य देखिए कि अगले दिन दलित रैली की खबर ही उस अखबार में नहीं छपी।
दरअसल मांझी मीडिया में अपनी उपेक्षा से काफी खफा थे। लेकिन मीडिया पर कार्रवाई करने के उनके हाथ भी बंधे थे। इस कारण ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। अपनी अनदेखी से ज्यादा वे लालू-नीतीश को मिल रही तरजीह से परेशान थे। जबकि वह लालू यादव और नीतीश कुमार की अनुकंपा और समर्थन से सरकार चला रहे थे।