आर्यन टीव न्यूज चैनल के कार्रयकारी सम्पादन अभिरंजन कुमार का मानना है पत्रकारिता पर सेंसरशिप के खेल में सरकार और मीडिया घराने बराबर के शरीक हैं इसलिए सरकार के विरोध के साथ मीडिया घरानों को भी निशाना बनाया जाना चाहिए.
ख़ुद एक लेखक और मीडियाकर्मी होने के बावजूद मीडिया-सेंसरशिप के ख़िलाफ़ अपने कुछ वक्तव्यों में मैंने अपने चैनल से और अपने लेख में भी साफ कहा था कि-
1. बिके हुए अखबारों को खरीदना बंद करो
2. जिन अखबारों में पत्रकारों की स्याही नहीं, उनकी मजबूरी का ख़ून छप रहा है, उन्हें जगह-जगह जलाओ.
मेरे इस सुझाव पर कई पत्रकार मित्रों के मन में दुविधा हैं और सवाल हैं. लेकिन
1. मैंने जो भी कहा है, सोच-समझकर कहा है और अपने बयान पर कायम हूं.
2. इसलिए कहा है क्योंकि यह पत्रकारों, अखबारों और पत्रकारिता के हित में है और इस लड़ाई में इसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम होंगे.
3. चूंकि बिहार में मीडिया-सेंसरशिप अखबार मालिकों और सरकार के नेक्सस में चल रहा है, इसलिए सरकार के साथ-साथ अखबार-मालिकों को भी शर्मिंदा करना ज़रूरी है. उपरोक्त दो कदमों से मीडिया हाउसेज के वे मालिक शर्मिंदा होंगे, जिन्होंने अखबार को कॉन्डोम और कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स जैसा प्रोडक्ट और पत्रकारों को अपना ज़रख़रीद ग़ुलाम समझ लिया है.
4. यह तरीका पूरी तरह अहिंसात्मक और गांधीवादी है, क्योंकि आपको याद होगा कि आज़ादी की लड़ाई के दौरान गांधी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद समेत देश के सभी बड़े नेताओं और चिंतकों ने जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी.
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