उत्तर प्रदेश के इतिहास में रिजवान अहमद, पहले मुस्लिम आईपीएस हैं जिन्हें पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया गया है. दंगों से बेआबरू हो चुकी यूपी सरकार की यह नियुक्ति मुलायम का मास्टर सट्रॉक माना जा रहा है.
अहमद मात्र दो महीने में रिटायर करने वाले हैं.
उम्मीद की जा रही थी कि अखिलेश सरकार पिछले साल अप्रैल में ही अहमद को डीजीपी बनाती पर ऐसा नहीं हुआ. इसके पीछे कारण यह समझा गया कि राज्य की नौकरशाही के सबसे प्रभावी पद यानी मुख्यसचिव के रूप में पहले ही जावेद उसमानी विराजमान थे.
ऐसी हालत में सीनियरिटी के बावजूद रिजवान अहमद को राज्य का डीजीपी नहीं बनाया गया पर मौजूदा डीजीपी देवराज नागर के रिटायर हो जाने के बाद अहमद को डीजीपी बना दिया गया है.
ऐसी हालत में जब मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कैम्पो में रह रहे मुस्लिम परिवारों के 34 बच्चों की ठंड से हुई मौतों और राहत शिवरों में रहने वालों के खिलाफ सरकार के बेरहम बर्तावों से समाजवादी पार्टी की बिगड़ी छवि के बाद अहमद की नियुक्ति क्षतिपूर्ति के रूप में देखी जा रही है.
डीजीपी के बतौर अहमद की नियुक्ति को मुलायम सिंह यादव के पॉलिटकल मास्टर स्ट्रॉक के रूप में भी देखा जा रहा है. चूंकि रिजवान अहमद अगले 28 फरवरी को रिटायर करने वाले हैं, ऐसे में समझा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी अहमद के कार्यकाल को अगले छह महीने तक बढ़ा कर अल्पसंख्यक समुदाय को अपनी तरफ आकर्षित करने का खेल खेल सकती है क्योंकि अगले छह-आठ महीने के बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में डीजीपी जैसे महत्वपूर्ण पद पर बने रहना चुनाव आयोग पर निर्भर करता है.
अगर आयोग अहमद को हटाना चाहे, तो ऐसी स्थिति में भी मुलायम इसका राजनीतिक फायदा उठाना चाहेंगे, यह कहते हुए कि आयोग ने मुस्लिम डीजीपी को हटा दिया.
रिजवान अहमद 1978 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और बलिया के रहने वाले हैं और इससे पहले डायेरक्टर जनरल रेलवे के पद पर थे.