पटना, ६ अप्रैल। यात्रा–वृतांत के लेखन के क्रम में, लेखक के समक्ष एक बड़ा द्वन्द चलता है । लेखक के समक्ष, अतीत वर्तमान में आना चाहता है, और वर्तमान, अतीत की ओर। एक सफल लेखक उसमें सामंजस्य स्थापित कर घटनाओं को इस तरह प्रस्तुत करता है, जो उसकी गति और लय को बनाए रखते हुए, पाठकों के हृदय में उतर जाता है।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में, सुप्रसिद्ध कवि–कथाकार मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘ की पुस्तक ‘एक सफ़र हिन्दोस्तान से हिन्दोस्तान तक‘ का लोकार्पण करते हुए, विद्वान साहित्यकार और विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के पूर्व अध्यक्ष प्रो शशि शेखर तिवारी ने कही। प्रो तिवारी ने कहा कि, लेखक ने इस पुस्तक में भारत के विभाजन, दंगे की भयावहता और जानोमाल की भारी विनाशलीला की आँखन–देखी और भोगे यथार्थ का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। लेखक ने पुस्तक में ‘मनुष्यता‘ को सबसे ऊपर रखा है।
मुख्य–वक़्ता के रूप में, पुस्तक पर अपना विचार व्यक्त करते हुए, वरिष्ठ साहित्यकार राम उपदेश सिंह ‘विदेह‘ ने कहा कि, इंसानीयत का मूल्य सबसे ऊपर है। यह सभी धर्मों के उपदेशों का सार है। यही मनुष्य का धर्म है। यदि यह नही तो किसी धर्म का कोई अर्थ नही है। सांप्रदायिक आधार पर देश का बँटवारा, संसार के लिए एक बड़ी दुर्घटना थी।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, मेजर भसीन का यह सफ़रनामा, भारत–पाकिस्तान के विभाजन की पृष्ठ–भूमि और विभाजन के दर्द को हीं नहीं, दोनों देशों के उन भोले नागरिकों की भावनाओं को भी अभिव्यक्त करता है। आज भी दोनों हीं देश के आम नागरिक विभाजन को दुर्भाग्यपूर्ण और दो मतावलंबियों के बीच फैलाई गई घृणा को अभिशाप मानते हैं, जिसका दंश आज भी दोनों देश झेल रहे है। सच्चे और अच्छे लोग आज भी सांप्रदायिक दुराग्रह को बुरा और मानव–समाज के लिए अत्यंत घातक मानते हैं। उन्होंने कहा कि, यह मेजर भसीन की आप–बीती तो है ही, उन लाखों विस्थापितों की व्यथा–कथा भी है, जिन्हें अपना घर–बार और कुटुंबियों को सदा के लिए छोड़कर जाना पड़ा, आना पड़ा। उनकी भी जो आगे की जानने के लिए बच नहीं पाए, पागल हत्यारों के शिकार हो गए। लेखक की यह पुस्तक भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच फैले कई मिथ्या दुराग्रहों को समाप्त करेगी।
लेखक ने अपने कृतज्ञता–ज्ञापन के क्रम में अनेक उन हृदय–विदारक क्षणों को स्मरण किया, जो विभाजन की त्रासदी के परिणाम थे। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक दोनों देशों के बीच सौहार्द बनाने में सहायक हो सकी, तो इसका लिखा जाना सफल हो जाएगा।
पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा, वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा शंकर प्रसाद, पं शिवदत्त मिश्र, सम्मेलन के साहित्यमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, डा टी आर गाँधी, सरदार गुरदयाल सिंह, डा कुमार अरुणोदय एवं मो रिज़वान ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर, डा जंग बहादुर पांडेय,अमियानाथ चटर्जी, ऋषिकेश पाठक, जय प्रकाश पुजारी, डा अर्चना त्रिपाठी, सुनील कुमार दूबे, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कृष्ण रंजन सिंह, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा आर प्रवेश, डा शालिनी पाण्डेय, लता प्रासर, डा सुलक्ष्मी कुमारी,प्रो सुशील कुमार झा, बच्चा ठाकुर, डा नागेश्वर यादव, नंदिनी प्रनय, शुभ चंद्र सिन्हा, बाँके बिहारी साव, सुरेश अरोड़ा, पं गणेश झा, जगदीश्वर प्रसाद सिंह, डा हँसमुख तथा डा मुकेश कुमार ओझा समेत बड़ी संख्या में साहित्य सेवी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
मंच का संचालन विदुषी साहित्यकार डा भूपेन्द्र कलसी ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन राज कुमार प्रेमी ने किया।