मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘ की कहानियाँ, समाज में निरंतर घट रही घटनाओं और यथार्थ का सत्य चित्रण प्रस्तुत करती हैं। किंतु उनमें शुष्क यथार्थ नहीं,जीवन को मूल्यवान बनाने वाले आदर्श और पुलकनकारी काव्य–कल्पनाएँ भी दिखाई देती हैं, जो किसी कथा को पठनीयता प्रदान करती हैं। इनकी कहानियाँ भी इनकी कविताओं की तरह आशावादी और शुभ संदेश वाहिकाएं हैं। यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में मेजर भसीन के लघु–कथा संग्रह, ‘एक सौ लघु कथाएँ‘ के लोकार्पण के पश्चात पुस्तक पर राय देते हुए वक्ताओं ने व्यक्त किए।
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि,मेजर भसीन की लोकार्पित पुस्तक में साहित्य के सभी रस का आस्वादन मिलता है। रचनात्मक साहित्य से जो भी अपेक्षाएँ एक पाठक रखता है,उन सारी अपेक्षाओं को यह पुस्तक पूरी करती है।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा ने कहा कि, पुस्तक के लेखक व्यक्तित्व से हीं एक मुक्त स्वभाव के सहृद पुरुष हैं। इनमें पंजाब और पंजाबियत का एक आकर्षक खुलापन है। स्वाभाविक रूप से पुस्तक की कहानियों में लेखक हर स्थान पर उपस्थित दिखाई देता है। कहानियाँ अत्यंत भाव–प्रवण और लेखक की अनुभूतियों से जुड़ी हुई हैं। अनेक कहानियाँ ऐसी हैं, जिसे पढ़ते–पढ़ते आँखें बार–बार नाम होती हैं।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, तेज़ी से भाग रही आज की दुनिया के लोगों के पास इतना वक़्त नही कि वह मोटी पुस्तकें पढ़ सके। साहित्य अब प्राथमिकताओं में रहा नही। ऐसे में कम समय में कही जाने वाली लघु–कथाएँ अत्यंत समीचीन है। प्रभावशाली लघु–कथाएँ, ‘बिहारी‘के दोहों की तरह ‘देखन में छोटन लगे, घाव करत गंभीर‘ के समान पाठकों पर बड़ा प्रभाव उत्पन्न कर सकती हैं। यह आज के लोगों में साहित्य के प्रति रुचि उत्पन्न करने में भी सहायक हो सकती हैं, जो‘मनुष्य‘ बने रहने के लिए, नितांत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि,मेजर भसीन काव्य–कल्पनाओं से समृद्ध एक समर्थ कवि और कथाकार हैं। आस–पास में निरंतर घट रही घटनाओं से वे कथा–वस्तु निकालते और उन्हें ख़ूबसूरत साँचे में डाल कर, सरल शब्दों में प्रस्तुत करते हैं, जो इनकी लेखकीय विशेषता है।
अपने कृतज्ञता–ज्ञापन में, पुस्तक के लेखक मेजर भसीन ने कहा कि, विविधताओं और संघर्ष से भरे अपने जीवन में और अपने आस–पास जो कुछ भी महत्त्वपूर्ण होते देखा है, उसे अपनी रचनाओं में उतारने की कोशिश की है। लिखते समय हमेशा यह सामने होता है कि, लोक जीवन संवेदनापूर्ण और मूल्यवान बन जाए। समाज से संवेदन–हीनता समाप्त हो और प्रेम का विस्तार हो।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद,डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा मेहता नगेंद्र प्रसाद सिंह तथा कवि राज कुमार प्रेमी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया। मंच का संचालन किया योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने। इस अवसर पर वरिष्ठ घनश्याम,सुनील कुमार दूबे,डा विनय कुमार विष्णुपुरी,समीर परिमल, शुभचंद्र झा, चंदा मिश्र,जय प्रकाश पुजारी,नरेंद्र झा, डा शालिनी पाण्डेय, कुमार राज भूषण मिश्र, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल‘,अर्जुन प्रसाद सिंह,राम किशोर सिंह ‘विरागी‘,राम नाथ शोधार्थी,केशव कौशिक, डा कैलाश पति यादव, श्याम नंदन मिश्र तथा राजेंद्र प्रसाद समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।