नीतीश-लालू की बढ़ती नजदीकियां भाजपा नेता सुशील मोदी को फूटी कौड़ी नहीं सुहा रहा है. ऐसे में उन्होंने नीतीश कुमार पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि उन्होंने लालू के कदमों में सर रख दिया है.
सुशील मोदी ने रविवार को कहा, कभी जनता से लालू की लालटेन फोड़ने की अपील करनेवाले नीतीश कुमार आज अपनी सरकार बचाने और राज्यसभा उपचुनाव में जदयू उम्मीदवारों को जिताने के लिए लालू के पांव पर पगड़ी रख कर गिड़गिड़ा रहे हैं.
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उन्होंने सवाल उठाये कि क्या लालू प्रसाद से फोन कर समर्थन मांगने के बाद भी नीतीश कुमार का स्वाभिमान और सिद्धांत बचा रह गया है? उन्होंनेकहा कि मुख्यमंत्री रहते नीतीश कुमार ने दल-बदल कानून के नियमों को तोड़ कर राजद के 13 विधायकों को विधानसभा में अलग गुट के रूप में मान्यता दिलायी. क्या यह संसदीय आचरण की नैतिकता के अनुकूल था? फिर जब राजद के समर्थन से सरकार बचाने की नौबत आयी, तब अलग गुटवाले फैसले को वापस कराया गया. नैतिकता तो दोनों बार तार-तार हुई. फिर भी उनकी जुबां पर नैतिकता की रट लगी रही.
ध्यान रहे कि नीतीश कुमार ने शनिवार को भाजपा पर प्रहार करते हुए कहा था कि वह पांच साल के लिए चुनी हुई बिहार सरकार को अस्थिर करने का अनैतिक खेल खेल रही है. नीतीश ने यहां तक कहा था कि भाजपा केंद्र में मिली सत्ता पर इतरा रही है. नीतीश कुमार ने आरोप लगाया था कि भाजपा के नेता चाह रहे हैं कि कब विधानसभा चुनाव हो और वह बिहार की सत्ता पर काबिज हों.
नीतीश कुमार के इस बयान के दूसरे दिन सुशील मोदी ने नीतीश कुमार पर प्रहार करते हुए कहा कि नीतीश कुमार गैर कांग्रेसवाद की राजनीति करते रहे, पर सरकार बचाने के लिए इस सिद्धांत को डीप फ्रिजर में डाल कर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को फोन कर कांग्रेस के चार विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया. कांग्रेस ने न तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया, न कोई विशेष पैकेज, लेकिन नीतीश कुमार ने सारे सिद्धांत भूल कर उसी कांग्रेस का समर्थन ले लिया. उन्होंने नीतीश कुमार से पूछा है कि भाजपा के दो और राजद के तीन विधायकों से इस्तीफा दिला कर जनता पर उपचुनाव का बोझ डालना कहां की राजनीति है?
जिस ललन सिंह ने किसान महापंचायत बुला कर नीतीश को अपनी ताकत दिखायी, ऑपरेशन कर उनके पेट से दांत निकालने की बात क ही और पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए उम्मीदवारों के खिलाफ काम किया, उसको लोकसभा चुनाव हारने पर पहले एमएलसी और फिर कैबिनेट मंत्री बनवा दिया गया. क्या यही सिद्धांत की राजनीति है?