बीते साल आज ही के दिन यानी 16 जुलाई 2013 की वह मनहूस दोपहरी, जब छपरा के मशरख प्रखंड के गंडामन धर्मसती गांव में जहरीला मिड-डे मील खाने से 36 बच्चो की मौत हो गयी थी, आज उसकी पहली बरसी है.
अनूप नारायण सिंह
यह भी कैसी विडंबना है कि सरकार और उसके कारिंदो को आज एक साल बाद भी इतनी हिमत नहीं कि इस गांव में आ कर उन माओं की सूनी पड़ी गोदों की बिलाप सुन सके.
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आज इस गांव के लोग उसी स्कूल के चबूतरे पर बैठें अपने प्यारे बच्चों की याद में बहदहवास हैं. इस एक साल में सम के कई थपेड़े आये और चले गये. लेकिन कोई नेता-मंत्री नहीं आया.
सररकारी मुआवजे का पुलिंदा थमा इस अभागे गांव को भूल जाने वाले नेताओं को यह बखूबी पता है कि, मरने वाले मासूम बच्चों में कोई किसी नेता का परिजन नही था. जब यह हादसा हुआ था तो सरकार के मुखिया ने इस गाव में जाना मुनासिब नही समझा था. भला अब किसी से कोई क्या उम्मीद रखे.
पर मां तो मां है..आज भी माताओं की सुनी आँखें अपने नौनिहालों को ढूंढ रही हैं. पर कोई नहीं जो दिलासा दिलाये, ढ़ाढस बंधाये.
रविवार 21 जुलाई की देर रात मैं उस गांव मे था. रात के लगभग 11 बज रहे थे. पूर्णिमा का चाँद नीले आकाश मे अपनी छटा बिखेर रहा था. गाव मे मातमी सन्नाटा छाया हुआ था.
घरों के पास से गुजरने के बाद रुक रुक कर आ रही सिसकियां विरानी को चीरती हुई हृदय को बेध रही थी. आइए याद करें वो पल- क्लिक कीजिए-मौत का हिसाब मांग रहे कब्र में पड़े मासूम